वमन

वमन एक प्राचीन पंचकर्म थेरेपी है जो कि पंचकर्म के पहले प्रमुख कर्मों में से एक है। वमन का प्रयोग मुख्यतः कफ विकार में किया जाता है । इस पद्धति को चिकित्सीय उल्टी के रूप में भी जाना जाता है, इसमें मौखिक मार्ग के माध्यम से उल्टी के द्वारा शारीरिक दोषों को बाहर निकाला जाता है।

आयुर्वेदिक की पद्धति में वमन चिकित्सा को इस प्रकार से परिभाषित किया गया है –

तत्र दोषरूपं ऊर्ध्व भागात् वमन संज्ञाकर्मम् |

उभय व्रिरामल विरहणद्विरेचन सन्मति लभते ||

वमन थेरेपी का तरीका (vamana therapy karne ke tarika)

वमन क्रिया के माध्यम से शरीर में मौजूद अशुद्धियों को उत्तेजित करके शरीर के बाहर निकाल दिया जाता है। वमन कर्म को हमेशा विरेचन कर्म से पहले किया जाता है, क्योंकि विरेचन कर्म को इसके बिना अधूरा माना जाता है । यदि वमन क्रिया के किए बिना ही विरेचन कर्म को किया जाता है तो यह प्रवाचिका का कारण बन सकता है जो कि उत्तेजित होकर कप और ग्रहणी जैसे विकारों को जन्म देता है।

वमन थेरेपी के लाभ – (vamana therapy benefits

जैसा कि हमने चर्चा की है कि वमन मुख्य रूप से कफ दोष के लिए हैं क्योंकि वसंत ऋतु में कफ दोष बढ़ जाता है। यही कारण है कि इस विधि को मार्च और अप्रैल के महीने में अधिकांशतः किया जाना चाहिए।

 

  1.    वमन चिकित्सा पद्धति कफ विकार को दूर करने के लिए  सबसे अच्छी मानी जाती है।
  2. आचार्य सुश्रुत (सुश्रुत संहिता के जनक) कहते हैं, जिस तरह पौधे को जड़ से खींचने के बाद फूल, फल और शाखाएं मर जाती हैं, उसी तरह जब मानव शरीर से कफ खत्म हो जाता है तो रोग जड़ से ठीक हो जाता है।
  3. वमन को नियमित रूप से करने से खांसी, गले का संक्रमण, अधिक नींद, ग्रहनी Irritable bowel syndrome (IBS) जैसे रोगों से बचा जा सकता है।

वमन कर्म करने के दिशा एवं निर्देश – (वमन से किस तरह के रोगों का इलाज)

  1. वमन चिकित्सा 15 वर्ष से ऊपर तथा 60 वर्ष की उम्र से कम लोगों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। 
  2. यह कफ दोष या कफ-पित्त विकार  से पीड़ित व्यक्तियों में किया जाता है।
  3. वमन क्रिया को बच्चों एवं 60 वर्ष से ऊपर के लोगों में नही किया जाना चाहिए।
  4.  जिन लोगों को उच्च रक्तचाप, अल्सर, मधुमेह, गर्भवस्था है तो उन्हें भी वमन क्रिया नही करना चाहिए।

 

वमन कर्म की प्रक्रिया – (vamana therapy kya hai)

वमन चिकित्सा प्रणाली को तीन भागों में विभाजित किया गया है..

  1. पूर्व कर्म
  2. प्रधान कर्म
  3. पाश्चात कर्म

 

पूर्व कर्म करने से पहले मरीज को पूरी तरह से इस क्रिया के लिए तैयार किया जाता है जिससे कि वह पूर्व कर्म के लिए उपयुक्त हो सके ।

पाचन और क्षुधावर्धक (दीपन और पाचन) का उपयोग – यह जठराग्नि (पाचन शक्ति) को बढ़ाता है और शरीर में हल्कापन लाता है। इस पद्धति में प्रयोग की जाने वाली जड़ी-बूटियों में अग्नितुंडी वटी, चित्रकादि वटी, त्रिकटु चूर्ण इत्यादि शामिल हैं।

आंतरिक स्नेहन (internal oilation)  – मेडिकेटेड या नॉन मेडिकेटेड घी को रोगी की आवश्यकता के आधार पर 3 से 7 दिनों तक दिया जाता है। जब तक कि डॉक्टर (चिकित्सक) को स्नेहन के उचित संकेत और लक्षणों न दिखाई देने लगें।

अभ्यंग (मालिस) और स्वेदन- आंतरिक स्नेहन  करने के बाद रोगी के शरीर पर स्वेदन के बाद हर्बल तेल से मालिश की जाती है।

इनके साथ ही एक उचित आहार व्यवस्था का प्रबंध किया जाता है जिसका पालन करना रोगी के लिए अनिवार्य रहता है। आमतौर पर अच्छी मात्रा में तरल और गर्म भोजन लेने की सलाह दी जाती है। जो आसानी से पचने योग्य हो। पूर्व कर्म से ठीक एक दिन पहले, भारी आहार जैसे कि बहुत सारा दूध, दही आदि लेने की सलाह दी जाती है।

प्रधान कर्म

प्रधान कर्म क्रिया को सुबह किया जाता है। रोगी को एक आरामदायक  कुर्सी पर बैठा कर वमन करवाया जाता है। डॉक्टर वमन कर्म से पहले और बाद में नाड़ी और रक्तचाप का रिकॉर्ड चैक करते है और फिर उत्सर्जक प्रक्रिया के द्वारा माथे और छाती को पकड़ कर रखा जाता है।  इसके बाद गर्भनाल को पीठ पर कोमल उर्ध्व मालिश के साथ दबाया जाता है।

पश्चात कर्म –

इस कर्म के अंतर्गत रोगी का तब तक निरीक्षण किया जाता है जब तक कि वह ताकत हासिल नहीं कर लेता । रोगी को सलाह दी जाती है कि तेज आवाज़, शोर, अत्यधिक घूमना-फिरना, व्यायाम, अत्यधिक ठंड, गर्मी आदि के संपर्क में आने से बचने बचना चाहिए। इसके साथ ही विशेष आहार लेने का परामर्श भी दिया जाता है। वमन चिकित्सा पद्धति के दुष्प्रभाव (vamana therapy side effects) बिल्कुल भी नही है।

वमन चिकित्सा पद्धति की लागत – (vamana treatment cost

पंचकर्मा चिकित्सा पद्धति की पांच पद्धतियाँ है, उन्हीं पाँच में से एक है वमन चिकित्सा पद्धति जिनकी अनुमानतः लागत मरीज की स्थिति के अनुसार निर्धारित होती है। वमन पद्धति में मरीज की बीमारी के अनुसार कई तरह के आयुर्वेदिक तरह द्रव्य तैयार किये जाते है जिससे इसकी लागत अलग-अलग हो सकती है। 

 

आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को बीमारी से बचाकर रखना है और बीमार व्यक्ति का स्वस्थ करना है। पंचकर्म आयुर्वेद का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होने के नाते इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करता है।

 

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Frequently Asked Questions

Benefits of vamana includes –
– It is considered the best treatment for kaphaja disorder.
– Acharya Sushruta says the way flowers, fruits and branches die after pulling the plant from the root, in the same way when excessive kapha is eliminated the origin of the disease is healed from the root.
– Vaman karma if performed on regular basis prevents cough, throat infection, excessive sleep, grahani dosha etc.

In ayurvedic text vamana is defines as-

तत्र दोषहरणं ऊर्ध्व भागात वमन संज्ञाकरम |
उभयं वा शरीरमल विरचनाद्विरेचन सँज्ञा लभते||

The method of expelling the impurities and vitiated doshas through the upper body channels is known as vamana (emesis).

Benefits of nasya karma includes –

– Improves the growth and health of the hair.
-Enhances the function of sense organs and prevents diseases related to head.
-Delays ageing

After vamana the patient is advised to take rest and avoid eating heavy food. It is advised to eat light food such as moong ki khichdi (made from rice and pulses).