गर्भावस्था में कौन से टेस्ट जरूरी होते हैं?
मां बनना हर महिला के लिए सबसे खूबसुरत पल होता है जो उन्हें मातृत्व का अहसास का दिलाता है। अगर आप भी मां बनने वाली है तो ये अहसास आपके मन में भी आता होगा। प्रेगनेंसी के समय एहतियात रखना बेहद जरुरी होता है क्योंकी आपका बच्चा इस दुनिया में कदम रखें उससे पहले ये आपकी जिम्मेदारी है कि गर्भ में बच्चे की सेहत अच्छी हो।
प्रेगनेंसी के समय ऐसी बहुत सी जांच होती है, जिसे हम नजरअंदाज कर देते है और एक छोटी सी चुक से आगे चलकर कठिनाइयां बढ़ जाती है। इनसे बचने के लिए आपको सभी प्रेगनेंसी में होने वाले टेस्ट की जानकारी होना बेहतर है जिससे आप और आपका बच्चा स्वस्थ रहे। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको बताएंगे की प्रेगनेंसी में कौन कौन से टेस्ट होते है।
प्रेगनेंसी में होने वाले टेस्ट- Pregnancy Mein Hone Wale Test
ज्यादातर दपंत्तियों को पता ही नहीं होता है कि गर्भावस्था में कौन से टेस्ट जरूरी होते हैं?। ऐसा माना जाता है कि प्रेगनेंसी के शुरुवात के तीन महीने बहुत नाजुक होते हैं क्योंकि इस समय मिसकैरेज का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। लेकिन ये तीन महीने सही से गुजर जाएं तो गर्भ ठहर जाता और गर्भावस्था में खतरा कम रहता है। यही वजह है कि गर्भावस्था की पहली तिमाही (First Trimester of Pregnancy) में अधिक सावधानी बरतने की जरुरत होती है और जरा सी लपरवाही भी बच्चे की जान को खतरे में डाल सकती है। गर्भ ठहरने और शिशु के स्वास्थ है या नहीं ये जानने के लिए कुछ ब्लड टेस्ट किए जाते है। इन निम्नलिखित में प्रेगनेंसी ब्लड टेस्ट नाम कुछ इस प्रकार से हैं-
आयरन और ब्लड शुगर टेस्ट (Iron and Blood Sugar Test)
हीमोग्लोबिन लेवल चेक करने के लिए ब्लड टेस्ट किया जाता है जिससे की पता चलता है कि शरीर में आयरन की कमी है या नहीं। गर्भवस्था के समय शरीर में पर्याप्त मात्रा में आयरन होना जरुरी होता है जिससे शरीर के सभी हिस्से और शिशु को ऑक्सीजन मिल सकें।
प्रेगनेंसी में ब्लड टेस्ट से आयरन की कमी का पता लगाया जा सकता है और डॉक्टर आपकी इस कमी को पूरा करने के लिए सप्लीमेंट देते हैं।
इसके अलावा ब्लड टेस्ट की मदद से आपका शुगर लेवल भी चेक किया जाता है। इस टेस्ट से जेस्टेशनल डायबिटीज का पता लगाया जा सकता है।
हेपेटाइटिस बी और एचआईवी (Hepatitis-B and HIV)
प्रेगनेंसी ब्लड टेस्ट रिपोर्ट से पता चलता है कि हेपेटाइटिस बी और एचआईवी की समस्या है या नहीं। क्योंकि मां को हेपेटाइटिस बी है तो इससे बच्चे को भी होने का खतरा बन सकता है। इसकी वजह से बच्चे के लिवर को नुकसान पहुंच सकता है। इस टेस्ट के माध्यम से डॉक्टर बच्चे को हेपेटाइटिस बी की समस्या से बचाने के लिए प्रेगनेंट महिला को एंटीबॉडीज का इंजेक्शन लगाते हैं।
सभी प्रेगनेंट महिलाओं को एचआईवी और एड्स का टेस्ट जरुर करवाना चाहिए। जिससे अपने होने वाले बच्चे को पहले ही इस बीमारी को पहुंचने से रोका जा सकता है।
आरएच फैक्टर (RH Factor)
प्रेगनेंसी में होने वाले टेस्ट में आरएच टेस्ट बच्चे की सेहत के लिए सबसे महत्वपूर्ण टेस्ट होता है। इस टेस्ट में लाल रक्त कोशिका (Red Blood Cells) के सतह पर प्रोटीन पाया जाता है जो आरएच पॉजिटिव (RH Positive) कहलाया जाता है। अगर लाल रक्त कोशिका के सतह पर प्रोटीन नहीं पाया जाता है जो आरएच नेगेटिव (RH Negative) कहलाया जाता है।
आरएच नेगेटिव होना कोई बीमारी नहीं है पर यह गर्भावस्था को प्रभावित कर सकता है। अगर मां आरएच नेगेटिव है और बच्चा आरएच पॉजिटिव है तो आपकी गर्भावस्था को विशेष देखभाल की जरुरत है। या फिर डॉक्टर आपको प्रेगनेंट महिला को आरएच प्रोटीन का इंजेक्शन लगाते हैं।
थायराइड लेवल टेस्ट
गर्भावस्था की पहली तिमाही में डॉक्टर थायराइड लेवल की जांच करते है। अगर आपको हाइपरथायराइड और हाइपोथायराइड है तो प्रेगनेंसी के दौरान मां को मॉनिटर किया जाता है ताकि बच्चे के विकास पर कोई असर न पड़े।
अन्य टेस्ट
प्रेगनेंसी के दौरान सीबीसी टेस्ट (Complete Blood Test), सिकेल सेल डिसऑर्डर और थैलीसीमिया टेस्ट करवाना बेहद जरुरी है।
विटामिन-डी टेस्ट करवाना भी बहुत जरुरी है क्योंकि कमी होने के कारण हड्डियां कमजोर हो सकती हैं या बच्चे के विकास में दिक्कत आ सकती है और मां में भी प्रीक्लैंप्सिया का खतरा बढ़ सकता है।
विटामिन-बी12 दिमाग और न्यूरोलॉजिकल विकास के लिए बेहद जरुरी है। इसकी कमी से बहुत गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती है जैसे बच्चे के दिमाग और नर्व्स का खराब विकास या फिर स्पाइना बिफिडा (Spina bifida) की समस्या होना।
प्रेगनेंसी के दौरान अल्ट्रासाउंड परिणामों की जांच करता है और बच्चे को सुरक्षित रखता है। आमतौर पर इन अल्ट्रासाउंड्स की सलाह दी जाती है-
- प्रांरभिक स्कैन: इस टेस्ट को शुरुवाती दिनों में किया जाता है जो बच्चे की धड़कन, एक्टोपिक प्रेगनेंसी, ब्लीडिंग क्यों नहीं हुई और कितने भ्रूण का पता लगाती है।
- 11 से 13 हफ्ते में सोनोग्राफी: ये जरुरी है कि क्रोमोसोमल और जेनेटिक असमानताओं वाले मार्कर्स का पता लगाने में मदद करता है। इसमें भ्रूण की कमियों को पता लगाने में मदद मिलती है।
- 19 हफ्ते में सोनोग्राफी: ये प्रेगनेंसी के दौरान की जाने वाली बेहद जरुरी सोनोग्राफी है जो बच्चे के सिर से पैर तक की संरचना को जांचता है।
- 28 से 36 में सोनोग्राफी: यह अल्ट्रासाउंड भ्रूण स्वास्थ्य स्कैन (fetal wellbeing scan) कहलाता है और ये जांचता है कि भ्रूण का विकास सही तरह से हो रहा है या नहीं, सहीं मात्रा में एम्नियोटिक फ्लूइड है या नहीं, कही भ्रूण को खराब ब्लड तो नहीं पहुंच रहा है। साथ ही जांच में पता चलता है कि गर्भ में बच्चा उल्टा तो नहीं है क्योंकि फिर डिलीवरी के समय बच्चे की जान को खतरा हो सकता है। इस समस्या में डॉक्टर समय से पहले ही सर्जरी भी कर सकते है।
ये सभी टेस्ट प्रेग्नेंसी के मुख्य अल्ट्रासाउंड्स हैं। खून की जांच और सोनोग्राफी की फ्रीक्वेंसी बढ़ सकती है अगर मां या बच्चे में हाई रिस्क फैक्टर्स हों तो। आपका डॉक्टर आपको इसके लिए गाइड करेगा।
इस लेख की जानकारी हमें डॉक्टर चंचल शर्मा द्वारा दी गई है। इस विषय से जुड़ी या अन्य पीसीओएस, ट्यूब ब्लॉकेज, हाइड्रोसालपिनक्स उपचार पर ज्यादा जानकारी चाहते हैं। हमारे डॉक्टर चंचल की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाए या हमसे +91 9811773770 संपर्क करें।