पंचकर्म पद्धति से दुरुस्त रखें अपना तन-मन – Panchakarma in Hindi
आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति आज की आधुनिक चिकित्सा से एकदम अलग है। चिकित्सा जगत की अनेक विधिओं ने चाहे कितनी तरक्की क्यों न कर ली हो लेकिन आज भी आयुर्वेद इतना महत्वपूर्ण है जितना कल महत्वपूर्ण था। आयुर्वेद पौराणिक हिंदी शब्द है जिसका मतलब जीवन का विज्ञान है। पांच हजार पुराना होने के बवाजूद आज भी आयुर्वेद इलाज की मान्यता में कमी नहीं आई है। आज के समय में इसकी महत्ता और भी बढ़ती जा रही है। आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में ही पंचकर्म पद्धति के माध्यम से विभिन्न रोगों का इलाज किया जाता है। साथ ही इससे आपकी तन-मन की सभी को काफी हद तक कम कर सकते हैं। आज इस आर्टिकल में हम पंचकर्म पद्धति (panchakarma in hindi) के बारे में विस्तार से जानेगे।
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पंचकर्म क्या है?- Panchakarma Kya Hai
पंचकर्म प्रतयक्ष रुप से आयुर्वेद की सबसे महत्वपूर्ण शाखा है। आयुर्वेद के अनुसार, एक मनुषय का शरीर पांच तत्वों से बना है। जैसे की आग, वायु, पानी, पृथ्वी और आकाश है और उन्हीं तत्व से ब्रह्मांड बना है। जब शरीर में इन पांचों तत्वों में गड़बड़ी आने लगती है तब दोष यानी शरीर में समस्या पैदा होने लगती है। आयुर्वेद इलाज से इन सभी दोषों को ठीक कर सामान्य किया जाता है।
कहते है की हर मुश्किल के पीछे तनाव होता है जो आंत की नली में सूजन पैदा कर सकता है। इस सूजन के कारण पाचन क्रिया प्रभावित होती है। सूजन और पाचन क्रिया की वजह से शरीर में विषाक्त पदार्थ इकठ्ठा होना शुरु हो जाते है। जब शरीर से विषाक्त पदार्थ बहार निकलेगा ही नहीं तो शरीर उर्जा कम महसूस करने के साथ-साथ शरीरिक और मानसिक रुप से सुस्त रहेगा।
इस पंचकर्म पद्धति के जरिए शरीर से विषाक्त पदार्थ बहार निकलेंगे तो शरीर में न केवल उर्जा महसूस करेंगे साथ ही शरीरिक और मानसिक रुप से सुधार भी होगा। पंचकर्म की पांच क्रिया में वमन, विरेचन, उत्तर बस्ती, नस्य और रक्तमोक्षण है।
पंचकर्म को तीन भागों में बांटा गया है:
- पूर्वकर्म
- प्रधानकर्म
- पश्चातकर्म
पूर्वकर्म (Poorva Karma)
यह शुरुवाती प्रक्रिया है जो पेट और ऊतको में मौजूद विषाक्त पदार्थों को त्यगाने में मदद करती है। और विषाक्त पदार्थों को शरीर से बहार निकाकर रोग प्रकिरोधक क्षमता में मजबूती लाता है।
- दपीन-पाचन: आयुर्वेद के अनुसार, हजामा को सही रखने के लिए पेट के विकार को दूर करना बहुत ही जरुरी होता है। दीपन-पाचन कर्म में कुछ ऐसी औषधियों का सेवन करवाया जाता है जिससे शरीर का पाचन तंत्र मजबूत बनें।
- स्नेहन: दूसरी प्रक्रिया में ऑयलेशन की प्रक्रिया में आपके पूरे शरीर पर तेल लगाया जाता है। अलग-अलग तरीके से आपके शरीर में तेल से मालिश की जाती है। आयुर्वेद ज्यादातर बाहरी इस्तेमाल के लिए तेल और घी के अलावा अलग तेल प्रदान करता है। इस प्रक्रिया में शरीर के प्रत्येक कोशिका में औषधीय अवयवों (Component) को ले जाने में मदद करता है और कोशिकाओं में फंसे विषाक्त पदार्थों को मुलायम करता है। ऐसा करने से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है।
- संवेदनम: तिसरी प्रक्रिया में फॉमेंटेशन में आपके शरीर से पसीना बाहर निकाला जाता है। पहले ऑयलेशन प्रक्रिया से आपके विषाक्त पदार्थ मुलायम हो जाते है। और फॉमेंटेशन की प्रक्रिया में आपके विषाक्त पदार्थ पतला या पानी के तरल के रुप में हो जाता है। ऑयलेशन के प्रक्रिया में कठोर विषाक्त को मुलायम बनाने का काम करता है। वहीं फॉमेंटेशन शरीर से विषाक्त पदार्थ को पसीने के मध्याम से बाहर निकालने में मदद करता है।
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प्रधानकर्म (Pradhan Karma)
पचकर्म चिकित्सा उपचार के पांच चरण होते है। ये पांच चरण के मुख्य कर्म इस प्रकार है-
- वमन: अयूर्वेद कहता है कि मौसम, रोगी, और रोग मरीज के अनुसार किया जाता है। ऑयलेशन और फॉमेंटेशन की मदद से विषाक्त पदार्थ को निकालने के लिए वमन का सहारा लिया जाता है। इस प्रक्रिया में आपको उल्टी करवाकर मुंह से दोष को बहार निकालना वमन कहलाया जाता है। वमन को कफ से जुड़ी समस्यओं के लिए समाधान माना जाता है। इस प्रक्रिया को तबतक किया जाता है, जबतक विषाक्त पदार्थ तरल के रुप में बाहर ना निकाल दें। और इसे ठीक तरीके से नहीं किया जाता है, तो विरेचन औषधि देने से कफ आंतों में चिपक जाता है। जिससे आपको पेट में रोग पैदा कर सकता है। वमन विधि से खासी, दमा, डायबीटीज, खून की कमी, मोटापे आदि जैसे रोगियों के लिए काफी असरदार है।
- विरेचन: इस प्रक्रिया में मलत्याग करना विरेचन कहलाता है। इस प्रक्रिया में आंत से विषाक्त पदार्थ को बहार निकाला जाता है। इसमें भी ऑयलेशन और फॉमेंटेशन से गुजरना पड़ता है। विरेचन की प्रक्रिया में जड़ी-बूटी खिलाई जाती है। जिसकी मदद से आपके आंत से विषाक्त पदार्थ को बाहर निकालने का काम करती है। जिनके शरीर में पित्त ज्यादा बनता है, उन लोगों के लिए काफी लाभदायक साबित होता है। इसलिए विरेचन को पित्त दोष का प्रधान चिकित्सा कहा जाता है। ये पीलिया, बवासीर और कोलाइटिस के लिए बहुत उपयोगी है।
- बस्ती: इस प्रक्रिया में आपके गुदामार्ग या मूत्रमार्ग से औषधि को शरीर में प्रवेश कराया जाता ताकि रोग का इलाज कर सकें। इसमें तरल पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है जैसे कि औषधी तेल और घी को आपके योनी तक पहुंचाया जाता है। इस पंचकर्म पद्धति से इनफर्टिलिटी का इलाज संभव है।
- नस्य: इस प्रक्रिया में आपके नाक के माध्यम से औषधि को शरीर में प्रवेश करवाया जाता है। जो आपके सिर के ऊपर वाले भाग से विषाक्त पदार्थ को बाहर निकालने में मदद करता है। ये पीसीओडी, पीसीओएस, हर्मोनल डिसऑडर (panchakarma treatment for infertility), माइग्रेन, सिरदर्द और बालों की समस्या के लिए उपयोगी साबित होता है।
- रक्तमोक्षण: रक्तमोक्षण की प्रक्रिया में आपके शरीर में खराब खून को साफ किया जाता है। खून साफ ना होने की वजह से शरीर में होने वाली बीमारी से बचाने में रक्तमोक्षण प्रक्रिया बहुत कारागर साबित होती है। शरीर के त्वचा रोग को दूर करना जैसे मुहांसे और एक्जिमा को ठीक करता है।
पश्चातकर्म (Paschat karma)
विशिष्ट आहार और विभिन्न औषधियों द्वारा कठोर निर्मूलन विषहरण प्रक्रिया के बाद शरीर को उसकी सामान्य शारीरिक स्थिति में वापस लाना पश्चकर्म के रूप में जाना जाता है।
पंचकर्म के फायदे- Panchakarma Ke fayde
- मेटाबॉलिज्म शक्ति और इम्युनिटी को बहाल करने में मदद करता है।
- तीनों दोषों को बैलेंस करने में मदद करता है।
- पंचकर्म आपकी उम्र को कम रखने में मदद करता है।
- इस प्रक्रिया से शरीर में रक्त संचार अच्छा हो जाता है।
- इस प्रक्रिया को करने से मन शांत और शरीर को आराम पहुंचता है।
- पंचकर्म आपके शरीर को पूरी तरह से शुद्ध रखता है।
- पंचकर्म पद्धति से इनफर्टिलिटी का इलाज किया जा सकता है।
- बढ़ते वजन को कम करने में मदद करता है।
- पंचकर्म के माध्यम से शरीर और दिमाग से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकाला जा सकता है।
जैसे-जैसे आपका पंचकर्म उपचार आगे बढ़ता है, आपको विशिष्ट औषधीय जड़ी-बूटियों और इसैन्श्यल ऑयल के साथ घर पर पालन करने के लिए आयुर्वेदिक आहार दिया जाएगा। ये आपके लिवर और पेट के अंगों को सक्रिय करने में मदद करेंगे और प्रदूषकों को दूर करने में मदद करेंगे।
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