नस्यम
नस्यम थेरेपी क्या है ( Nasya therapy kya hai)
नास्य कर्म पंचकर्म पद्धति सिर्फ रोगोपचार(treatment of disease) हेतू ही नही है बल्कि इसे व्यक्ति के उत्तम स्वास्थ्य की दृष्टि से भी करना लाभकारी माना जाता है। पंचकर्म पांच चरणों से मिल कर बनी है जिसकी एक कड़ी नास्य कर्म भी है।
नस्यम थेरेपी के अंतर्गत नाक के माध्यम से एक प्रकार का हर्बल द्रव्य प्रविष्ट कराया जाता है जो की तेल, घी , पाउडर , तरल या फिर धुंए के रूप में हो सकता है।
नासिका कर्म का प्रभाव मुख्य रूप से गर्दन के ऊपरी भागों पर पड़ता है जबकि अप्रत्यक्ष रूप से ये पूरे शरीर को आरोग्य प्रदान करता है।
ये थेरेपी मुख्य रूप से सिर क्षेत्र से विषाक्त पदार्थों को समाप्त करने के लिए अपनाई जाती है। नास्य कर्म में दी जाने वाली दवाएँ नाक, गुहा- घ्राण, उप कला- एथमॉइड हड्डियों- पूर्व काल, कपाल, फोसा से सेरेब्रल कॉर्टेक्स के मध्य और पार्श्व घ्राण क्षेत्र तक प्रविष्ट कराई जाती है।
नास्य की परिभाषा – “औषधमौषधसिद्धो वा स्नेहो नासिकाभ्याम दीयसि इसि नस्यम् ”
नास्य कर्म एक चिकित्सीय प्रक्रिया है जिसमें औषधि को नाक मार्ग के माध्यम से प्रवेश कराया जाता है।
नस्य कर्म के प्रकार –
नस्य कर्म पाँच के होते है –
नवन – यह एक महत्वपूर्ण नस्य कर्म प्रक्रिया है जिसका उपयोग अक्सर नवाना में किया जा सकता है। इस पद्धति में अणु तेल का उपयोग किया जाता है। इसमें औषधीय तेल को नाक के छिद्रों द्वारा बूद-बूद करके प्रविष्ट कराया आता हैै। नवन प्रक्रिया के द्वारा सिरदर्द, बालों का झड़ना, कान का दर्द या कान में विकार, फ्रोजन शोल्डर, बालों का समय से पहले सफ़ेद होना इत्यादि से निजात मिल जाती है।
अवपीड़ा नस्य – इसमें हर्बल एक्सट्रैक्ट को नासिका छिद्रों ले माध्यम से प्रवेश किया जाता है। अवपीड़ा नस्य से मिर्गी, चिंता, भय, क्रोध, तंत्रिका संबंधी विकार, नाक से खून बहना आदि विकारों को दूर करने में लाभ मिलता है।
प्रधमन नस्य – यह शोधन नास्य कर्म है और इसमें नाड़ी यंत्र के माध्यम से पाउडर रूपी औषधियों को नाक द्वारा साँस लेने पर अंदर प्रविष्ट कराया जाता है। यह krimija siroroga, विषाक्तता और मानसिक रोगों में संकेत होने पर दिया जाता है। प्रधमन नस्य में प्रयुक्त औषधियाँ कत्थाला, लहसुन, सेंधा नमक, वच, मरिच आदि हैं।
धूमा नस्य – इस प्रकार के नस्य कर्म में नाक के माध्यम से औषधीय धुएं का सेवन और मुख मार्ग से कराया जाता है नाक के रास्ते से बाहर कर दिया जात है। इसे शिरोरोग (सिर में रोग), नासा रोग (नाक की बीमारी) और अक्षी रोग (आंख की बीमारी ) आदि बिमारियों की रोकथाम में इस चिकित्सा का प्रयोग किया जाता है।
प्रतिमर्श नस्य – इस विधि के द्वारा नथुने के माध्यम से औषधीय तेल को प्रविष्ट कराया जाता है। यह बहुत आसानी से किया जाता है। यह कर्म व्यायाम, यौन संबंधों , शौच, गार्गल, वामन चिकित्सा, सिर की मालिश आदि के बाद दिया जाता है।
नस्यकर्म की क्रियाविधि – (Nasya karm ki vidhi)
पूर्वकर्म – यूरिन (मूत्र) को शरीर से बाहर निकालने और उचित आहार का सेवन करने के बाद रोगी को हल्की सी स्नेहन अर्थात सिर की मालिश दी जाती है। तप स्वेदना को विशिष्ट क्षेत्र पर इंगित किया जाता है। इसके बाद सिर, गर्दन और चेहरे के विशिष्ट क्षेत्रों में मालिश की जाती है। यह पूरी प्रक्रिया के फलस्वरूप संचित विषाक्त पदार्थ ढीले पड़ जाते हैं।
प्रधान कर्म – रोगी को दिए जाने वाले नस्य कर्म के अनुसार एक विशिष्ट स्थिति में रखा जाता है।
पश्चात् कर्म – नस्य कर्म के बाद उचित और हल्के आहार का सेवन करना जरुरी होता है। दवा लेने केे बाद कंधे, गर्दन और चेहरे पर हल्की मालिश की जाती है। नास्य कर्म के बाद स्वेदना को दोहराया जाता है।
नस्य कर्म के दौरान क्या नही करना चाहिए –
यात्रा, क्रोध, शराब, ठंडा पानी आदिे चीजों से बचा जाना चाहिए।
नस्य कर्म कब नही करवाना चाहिए –
यदि कोई व्यक्ति खांसी, गले का संक्रमण, नींद न आना, मुंह से दुर्गंध आना, ग्रैनो दोष इत्यादि समस्याओं से परेशान है तो ऐसी स्थिति में नस्य कर्म का उपचार नही करना चाहिए।
नास्य कर्म के दिशा एवं निर्देश –
चरक संहिता के अनुसार ऐसे लोगों का नस्य कर्म नही करना चाहिए – जैसे
खट्टी डकार आने पर न करें।
तुरंत भोजन के बाद नस्य कर्म न करें।
यदि घी या तेल युक्त भोजन किया है तो भी नस्य कर्म न करें।
यदि अधिक प्यास लगी हो तो भी नस्य कर्म न करें।
विरेचन कर्म के तुरंत बाद नस्य कर्म न करें।
गर्भास्था के दौरान नस्य कर्म न करें।
बुखार तथा शोक में भी नस्य कर्म करने की मानही है।
पक्षाघात चेहरे का पक्षाघात hyperpigmentation सिरदर्द कान, नाक और गले आदि से संबंधित रोग। नास्य कर्म के अंतर्विरोध की स्थिति में चरक संहिता के अनुसार, नस्य कर्म नही करना चाहिए।
नास्य कर्म में उपयोग की जाने वाली कुछ औषधियों – (Nasya karm ki dava)
अपामार्ग
पिपली
मरिचा (बड़ी लाल मिर्च)
विडंग
शिग्रु
अणु तेल
जात्यादि तेल
वच
कुंकमादी तेल इत्यादि
इस प्रकार नास्य कर्म यदि ठीक प्रकार से किए जाएं तो आंख-कान और नाक से संबंधित रोगों की रोकथाम में अच्छा खासा लाभ मिलता है। साथ ही बढ़ती उम्र के साथ होने वाली बीमारियों की रोकथाम लिए भी कारगर है।