पंचकर्म चिकित्सा में वमन, विरेचन, नस्यम, बस्ती और रक्तमोक्षण को शामिल किया गया हैं। पंचकर्म की इन सभी प्रणाली में से आज के लेख में रक्तमोक्षण का वर्णन करेंगे।
रक्तमोक्षण, पंचकर्म की पाँच शुद्धिकरण प्रक्रियाओं में से एक है। यह शरीर से दूषित रक्त को निकालने का कार्य करती है। ये तो स्पष्ट है कि रक्त को प्रभावित करने वाले दोष विभिन्न रोगों को जन्म देते हैं। इस प्रकार रक्तमोक्षण चिकित्सा के द्वारा शरीर से दूषित रक्त को समाप्त कर दिया जाता है।
इसका उपयोग प्राचीन समय से ही आयुर्वेदिक चिकित्सा के रूप में होता आ रहा है। जो की एक विशेष पद्यति है। यह एक डिटॉक्सिफिकेशन थेरेपी है जो स्वास्थ्य को बनाए रखती है और बीमारियों को भी ठीक करती है।
यह प्रक्रिया अशुद्ध रक्त को शरीर से बाहर निकालती है। अतः इसके द्वारा रक्तधातु को शुद्ध किया जाता है। इस चिकित्सा का उपयोग त्वचा रोग, उच्च रक्तचाप, मुँहासे, गठिया, मोटापा, हृदय रोग,स्त्री रोग, निःसंतानता आदि रोगों में किया जाता है।
रक्तमोक्षण के प्रकार – (Raktamokshan ke prakar)
रक्तमोक्षण की प्रक्रिया को प्रयुक्त उपकरण के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है –
शस्त्र – इस प्रक्रिया में तेज अथवा धारदार उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
सिरवेधा (वेनिपंक्चर) – इसमें स्कैल्प या वेन सेट का उपयोग करके स्किन में छिद्र किया जाता है। इस प्रक्रिया में आमतौर पर 100 -150 मिलीमीटर रक्त बिना किसी दुष्प्रभाव के निकाला जाता है। यह प्रक्रिया बीमारी को जड़ से ठीक करने में सक्षम है। सिरवेधा को विभिन्न रोगों के लिए आधा उपचार माना जाता है क्योंकि अधिकांश रोग का मूल कारण रक्त संक्रमण ही है।
अनुशस्त्र – इसमें किसी भी उपकरण का उपयोग नहीं किया गया है और यह 3 प्रकार से संपन्न की जाती है –
जालोका (जोंक चिकित्सा – Leech therapy ) – इस प्रक्रिया में जोकों को शरीर के विषाक्त रक्त की शुद्धिकरण हेतू उपयोग में लाया जाता है। जोंक अशुद्ध रक्त को चूसने और रक्त आपूर्ति स्थापित करने के लिए विशेष तौर पर शरीर पर छोड़ा जाता है।
श्रूंगा (गाय का सींग) – गाय के सींग का बड़ा खुला हिस्सा शरीर के प्रभावित हिस्से पर रखा जाता है और दूसरे सिरे से खून चूसा जाता है।
Alabu (pitcher gourd) – करेले की बोतल के इस्तेमाल से रक्तपात की विधि ।
रक्तमोचन के लाभ – ( BENEFITS OF RAKTAMOKSHAN )
रक्क्तमोचन पद्धति के कई लाभ है जिन्हें बताया गया है-
यह सभी प्रकार के त्वचा रोग का इलाज करता है।
मुँहासे के लिए सबसे अच्छा इलाज है।
हाइपरलिपिडिमिया, सोरायसिस, ल्यूकोडर्मा आदि को ठीक करता है
यह हृदय रोग और उच्च रक्तचाप में फ़ायदेमंद है।
यह मोटापे को कम करने के लिए एक अच्छा इलाज है।
रक्तामोक्षण थेरेपी आमतौर पर अक्टूबर से दिसंबर के महीने में सामान्य डिटॉक्सिफिकेशन के लिए उत्तम मानी जाती है, परंतु रोगी की स्थिति के आधार पर आप किसी भी समय इस चिकित्सा से रोग उपचार करवा सकते है। यह चिकित्सा रोग की गंभीरता को कम करती है ।
रक्तमोक्षन कब नही करना चाहिए – (Raktamokshan kab nahi karna chahiye)
रक्तमोचन थेरेपी के लिए कुछ नियम होते है जिनके आधार पर यह चिकित्सा की जाती है। परंतु मरीज में कुछ ऐसी परिस्थितियां होती है जिसमें आयुर्वेद करने की इजाज़त नही देता है।
पीप (पस) आने पर न करें।
गोनोरिया (सूजाक) जैसे रोग होने पर न करें।
खून बहने की अवस्था में इसे न करें।
नोट – रक्तमोक्षन थेरेपी को अधिक ठंड या गर्म, पसीने की अधिकता या तापमान की अधिकता में नहीं करना चाहिए।