जन्माष्टमी और मातृत्व का सुख

जन्माष्टमी और मातृत्व का सुख के बारे में बात करेंगे : जन्माष्टमी का त्यौहार हर वर्ष भाद्रपद के महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि  द्वापर युग में भगवान् श्री कृष्ण का जन्म इसी दिन हुआ था। कृष्ण के जन्म से जुड़ी एक प्रसिद्ध कहानी है कि उनका जन्म माता देवकी के गर्भ से कारावास में हुआ था लेकिन उनके मामा कंस के डर से पिता वासुदेव ने उन्हें एक टोकरी में रखकर गोकुल में माता यशोदा व नन्द बाबा के घर छोड़ आये। यानी अगर मातृत्व के दृष्टिकोण से देखा जाये तो भले ही कृष्ण की जननी माता देवकी रही हों लेकिन उनको पाल पोषकर बड़ा करने का कार्य माता यशोदा ने किया था। इस प्रकार एक श्री कृष्ण ने दो माताओं को मातृत्व का सुख दिया। 

भगवान् श्री कृष्ण की बाल लीलाओं की कहानी इतनी प्रसिद्ध है कि कई कवियों ने इसको आधार बनाकर रचनायें की हैं। कृष्ण की इन्ही लीलाओं के कारण हिंदी में एक नए रस का उद्भव हुआ जो था “वात्सल्य” रस। वात्सल्य रस वह रस है, जिसमे माता-पिता का अपने बच्चों के प्रति निश्छल प्रेम दर्शाया जाता है। 

आजकल हर स्त्री का सपना होता है कि वो भी माता देवकी की तरह अपने गर्भ से किसी नटखट नन्दलाल को जन्म दे और फिर माता यशोदा की तरह प्यार से उसकी परवरिस करे। लेकिन बदलती हुयी जीवनशैली, खानपान में लापरवाही, और शारीरिक रूप से कम एक्टिव होने के कारण लाखों लोगों का यह सपना अधूरा रह जाता है।

निःसंतानता की यह समस्या न केवल भारत में बल्कि पुरे विश्व में व्याप्त हो गयी है। इसी को ख़त्म करने का उद्देश्य लेकर आशा आयुर्वेदा की टीम अपने अनुभवी डॉक्टर्स के साथ एक मिशन पर निकली है जो आपकी उम्मीद को जगाये रखने में सहायता करेगी। वो भी बिना किसी सर्जरी और ऑपरेशन के केवल आयुर्वेदिक दवाओं, थेरेपी, डाइट और एक्सरसाइज के माध्यम से।

जन्माष्टमी के दिन हर घर आँगन में छोटे बच्चों को बहुत ही प्यार से सजाकर राधा-कृष्ण की झांकी बनाते हैं और पुरे घर में चहल पहल बनी रहती है। लेकिन वहीँ कुछ परिवार ऐसे भी होते हैं जहाँ बच्चों की किलकारी का नामोनिशान नहीं होता है।

अक्सर ऐसे त्यौहार वाले दिन उन घरों में उदासी छायी रहती है। लेकिन आपके जीवन में भी खुशियों के रंग भरने निःसंतानता को ख़त्म करने की पहल करते हुए आशा आयुर्वेदा के वैद्यों ने हज़ारों परिवार को संतानसुख को महसूस करने का अवसर दिया है। 

आजकल बढ़ती हुयी निःसंतानता के कई कारण हो सकते हैं जैसे स्ट्रेस, ट्यूबल ब्लॉकेज, एंडोमेट्रिओसिस, पीसीओडी, IVF FAILURE आदि। माता देवकी की तरह अपने गर्भ से नन्दलाल को जन्म न दे पाने का दुःख लिए महिलाओं को कई तरह की सामाजिक प्रताड़ना भी झेलनी पड़ती है। उन्हें बाँझ कहकर बुलाया जाता है और कई बार शुभ कार्यों में उनकी सहभागिता को अशुभ माना जाता है और उन्हें इन सबसे दूर रहने के लिए बाध्य किया जाता है। 

आधुनिक दौड़ में चिकित्सा विज्ञान ने इतना विकास कर लिया है कि कुछ भी असंभव नहीं रह गया है। ज्यादातर मामलों में आयुर्वेदिक उपचार द्वारा आपकी लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर प्राकृतिक रूप से माँ बनने में सफलता मिलती है।

प्राकृतिक रूप से माँ बनने की खास बात यह है की आप नौ महीने तक एक अजन्मे बच्चे को अपने गर्भ में पालती हैं और उसके एक एक हरकत को महसूस करती हैं। इन नौ महीनों में बच्चे का अपनी माँ के साथ बहुत ही गहरा सम्बन्ध बन जाता है। बस इसी एहसास के कारण बहुत सी महिलाएं सरोगेसी या एडॉप्शन की बजाये खुद गर्भधारण करके बच्चे को जन्म देना चाहती हैं। एक बच्चे से किस तरह आँगन में चहल पहल बनी रहती है। 

मातृत्व का सुख एक बेहद खूबसूरत एहसास है जो प्राकृतिक रूप से स्त्रियों के हिस्से आया है। बच्चे को नौ महीने तक गर्भ में रखना, पालना-पोसना, खिलाना-पिलाना यह सब कार्य एक माँ बखूबी करती है। औरतों के जीवन का यह महत्वपूर्ण हिस्सा होता है, जिसे मातृत्व सुख भी कहते हैं। कई बार यह जिम्मेदारी परिवार के अन्य सदस्यों को भी उठानी पड़ती है लेकिन बच्चे की पहली धड़कन से उसके पहले कदम तक का पूरा सफर एक माँ ही समझ सकती है।

चाहे विज्ञान ने कितना ही विकास क्यों ना कर लिया हो बच्चे को जन्म देने का यह कार्य आज भी औरतों का है। हालाँकि कुछ मामले ऐसे भी होते हैं जिसमे कोई औरत माँ बनने में सक्षम नहीं होती है लेकिन अगर वह सरोगेसी भी चुनती है तो माँ बनने का यह सौभाग्य एक साथ दो महिलाओं को मिलता है। जैसे भगवान् श्री कृष्ण के मामले में माता देवकी और यशोदा दोनों को मातृत्व का सुख मिला। 

इस लेख की जानकारी हमें डॉक्टर चंचल शर्मा द्वारा दी गई है। इस विषय से जुड़ी या अन्य पीसीओएस, ट्यूब ब्लॉकेज, हाइड्रोसालपिनक्स, एंडोमेट्रिओसिस, फाइब्रॉइड, और निसंतानता आदि के उपचार पर ज्यादा जानकारी चाहते हैं। हमारे डॉक्टर चंचल की वेबसाइट www.drchanchalsharma.com पर जाए या हमसे 9811773770 पर संपर्क करें।

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