infertility

बच्चे जीवन का अर्थ और आनंद हैं। कई जोड़ों को शादी के बाद समय पर बच्चे न होने की चिंता रहती है। समय पर सही इलाज से आज ज्यादातर बांझपन की समस्या को ठीक किया जा सकता है। जीवनशैली और नजरिए में बदलाव के कारण बांझपन का इलाज तेजी से महत्वपूर्ण होता जा रहा है।

बांझपन (निःसंतानता) की समस्या आज के समय में एक सामान्य समस्या बनती जा रही है। गांवों की तुलना में शहरों यह समस्या बड़ी ही तेजी के साथ पैर पसार रही है। ऐसे में यह सबसे बड़ा प्रशन उठता है कि कैसे इस समस्या पर काबू पाया जा सके। आज के समय में अधिकांश लोग इनफर्टिलिटी की समस्या से परेशान है, क्योंकि यह आजकल कॉमन समस्या बन चुकी है। 

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इनफर्टिलिटी कितने प्रकार की होती है ?

इनफर्टिलिटी दो प्रकार की होती है – प्राइमरी और सेकेंडरी: प्राइमरी इनफर्टिलिटी का मतलब है कि दंपति कभी गर्भवती नहीं हुए हैं। सेकेंडरी इनफर्टिलिटी का मतलब है कि दंपति को पहले एक गर्भावस्था हो चुकी है और बाद में गर्भधारण करने में असफल रहे। विश्व स्तर पर, अधिकांश बांझ जोड़े प्राथमिक बांझपन का अनुभव करते हैं।

हाल ही में हुए इफर्टिलिटी के आंकडे बताता है कि हर 6 में से एक दंपति को निःसंतानता की समस्या है। इनफर्टिलिटी के कारणों की ओर रुख करें।  तो इसका मुख्य कारण आजकल का गलत खानपान, गतिहीन जीवनशैली, बेमेल भोजन, तवान से भरी दिनचर्या, हार्मोन में असंतुलन , मोटापा, देर से शादी, शराब सिगरेट का सेवन इत्यादि सब घटक इनफर्टिलिटी के लिए जिम्मेदार है। 

भारत के साथ-साथ पूरी दुनिया में क्यों कम होती जा रही है प्रजनन दर ?

कम प्रजनन दर दुनिया भर में आम होती जा रही है, खासकर कई शहरी सेटिंग्स में जहां महिलाएं वयस्क होने पर अपने पहले बच्चे पैदा करने की योजना बना रही हैं। बांझपन दुनिया भर में प्रजनन-आयु वाले जोड़ों के 15% तक प्रभावित करता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में प्राथमिक बांझपन की व्यापकता 3.9 से 16.8 प्रतिशत के बीच है। भारतीय राज्यों में बांझपन की व्यापकता उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र में 3.7 प्रतिशत से लेकर आंध्र प्रदेश में 5 प्रतिशत और कश्मीर में 15 प्रतिशत है।

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क्यों बढ़ रही है बांझपन की समस्या ?

आज के टाइम में महिला एवं पुरुष दोनों की दिनचर्या, खानपान और खराब आदतों की वजह निःसंतानता की समस्या दिन-ब-दिन बढ़ती ही जा रही है। आज कल अधिकतर लोग खाने में फास्टफूट खाना अधिक पसंद करते है । जिसकी वजह से महिला एवं पुरुषों की प्रजनन क्षमता कमजोर होती है। मोटापा और तनाव भी बांझपन का एक बड़ा कारण है। 

आज कल अधिकतर लोगों स्वाद के चलते अपने स्वास्थ्य को भूल जाते है जिसकी वजह से शरीर में हार्मोन का संतुलन खराब हो जाता है। और इनफर्टिलिटी जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती है। इस प्रकार की अस्त-व्यस्त जीवनशैली के कारण महिलाओं में इस तरह की समस्या आने लगती है। जैसे कि – 

  1. नलों का बंद हो जाना 
  2. बच्चेदानी में कोई परेशानी आ जाना अर्थात रसौली जैसी दिक्कत होना (बच्चेदानी का आकार छोटा होना)  । 
  3. पैल्विक इन्फ्लैमिटरी डिजीज के कारण भी नले बंद हो जाते है। 
  4. बार-बार गर्भपात होने के कारण भी इनफर्टिलिटी होने के चांस रहते है। 
  5. अंडेदानी की समस्या जैसे की अंडा न बनने के कारण भी इनफर्टिलिटी का प्रतिशत बढ़ रहा है। 
  6. यदि अंडा बन भी जाता है तो पूरी तरह से परिपक्व (मैच्योर) नही हो पाने की कारण बांझपन बढ़ रहा है। 
  7. कुछ ऐसे भी केश है जिसमें अंडादानी ही विफल (फेल) हो जाती है। 

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पुरुषों के स्खलन में कठिनाई आजकल बांझपन का कारण क्यों बनती जा रही है?

सिस्टिक फाइब्रोसिस जैसी अनुवांशिक बीमारियां शुक्राणु उत्पादन और शुक्राणु रिलीज में हस्तक्षेप कर सकती हैं। प्रजनन अंगों में चोट, संक्रमण और कुछ दवाओं के कारण बांझपन और शीघ्रपतन जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
धूम्रपान, शराब का सेवन, संक्रमण, उच्च रक्तचाप और अवसाद भी ऐसे कारक हैं जो शुक्राणु उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं। इन सबके अलावा निःसंतान दंपतियों द्वारा अनुभव किया जाने वाला मानसिक तनाव भी बहुत बड़ा है। उन्हें परिवार और समाज से काफी मानसिक परेशानी झेलनी पड़ती है। 
बांझपन एक ऐसी स्थिति है जिसका इलाज पूरी तरह संभव है। बांझ दंपतियों के परिवार के सदस्यों को उनके संकट की इस घटी को समझने और साहस और शक्ति देने की जरूरत है। अगर दंपति सही समय पर इलाज लेते हैं, तो माता-पिता बनने का उनका सपना साकार होता है।

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