पति-पत्नी के झगड़े की वजह तो नही बसंत ऋतु परिवर्तन – डॉ चंचल शर्मा
बसंत ऋतु को ऋतुओं ऋतुओ का राजा कहा जाता है। बसंत ऋतु के आगमन के साथ ही वृक्षों में नये पत्ते व फूल लगने लगते है। जो धरती रुपी माँ में चार चांद लगा देते है। इन पुष्पों के पराग कण वातावरण में नमी (मादकता) पैदा कर देते है। यह ऋतु फाल्गुन और चैत्र मास में आती है। बसंतु ऋतु के साथ ही सूर्य की किरणें तेज होने लगती है। जो हमारे पेट की जठराग्नि प्रभावति कर देती हैं। जिससे महिलाओं का पाचन तंत्र खराब हो सकता है।
वसंतु ऋतु संतुलन बनाने की ऋतु होती है। इसलिए शारीरिक संतुलन भी बहुत जरुरी है। इस ऋतु में महिलाओं की फर्टिलिटी में अच्छा सुधार होता है। तो यदि आप बेबी प्लान कर रही है। तो संयम बनाकर प्रेगनेंसी का भी प्रयास कर सकती है।
पेट की अग्नि मंद (धीमी) होने के कारण शरीर में बहुत सारी समस्याएं उत्पन्न होने लगती है। और महिलाओं में कफ दोष की परेशानी भी होने लगती है। जिससे उनके स्वाभाव में चिड़चिड़ा भी देखा जा सकता है। तथा महिलाओं में आलस की प्रधानता भी होते ही जिससे शरीर में सुस्ती आ जाती है। कार्य करने में विशेष रुची नही देखने को मिलती है। कफ दोष की अधिकता से महिलाओं के स्वाभाव में तेजी के कारण पत्नी-पत्नी में नोक झोक की स्थिति बन सकती है।
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वसंत ऋतु में क्यों बढ़ जाती है महिलाओं में कफ की अधिकता
आयुर्वेद के अनुसार जो बसंत का समय होता है। वह शीत ऋतु और ग्रीष्म ऋतु का संधिकाल होता है। बसंत में समशीपोष्ण होता है। अर्थात इस समय न तो तेज सर्दी होती है और न ही अधिक गर्मी होती है। कुल मिलाकर मौसम मिलाजुला होता है। दिन में गर्मी और रात में हल्की सर्दी जैसा हर किसी को महसूस होता है। इस कारण से शरीर का रक्त संचार दिन में तीव्र और रात्रि में हल्का हो जाता है। जिससे कफ दोष और पित्त दोष की अधिकता इस ऋतु में हो सकती है। जिसका निवारण वमन कर्म के द्वारा किया जाता है।
महिलाओं के पित्त दोष और कफ दोष का नियंत्रण संतुलित आहार और जीवनशैली में सुधार करके किया जा सकता है। जिससे ऐसी परिस्थितियाँ ही न बने जो घर की कलह की वजह बनें।
चरक संहिता में बसंत ऋतु के संदर्भ में कहा गया है। कि हेमंत ऋतु में महिलाओं के शरीर में संचित हुआ कफ वसंत ऋतु में सूर्य की किरणों से प्रभावित होकर कुपित (द्रवीभूत) हो जाता है। इस कारण से महिलाओं की जठराग्नि मंद हो जाती है। कफ दोष प्रभावित हो जाने के कारण महिलाओं को वसंत के मौसम में कफ से संबंधित रोग जैसे – खाँसी, जुकाम, नजला, दमा, गले की खराश, टॉन्सिल्स, पाचन शक्ति की कमी, जी मिचलाने की परेशानियां होती हैं।
वसंत ऋतु में कैसी होनी चाहिए डाइट
आयुर्वेद शास्त्र के सिद्धांत कहते हैं। कि वातावरण में सूर्य का बल बढ़ने और चंद्रमा की शीतलता कम होने से जलीय अंश और चिकनाई कम होने लगती है। जिसका प्रभाव शरीर पर पड़ने लगता है और शरीर में दुर्बलता (कमजोरी) जैसे लक्षण भी दिखाई देने लगते है। इसलिए इस ऋतु में डाइट में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है। अम्ल, लवण, मधुर (मीठा) रस वाले खाद्य पदार्थों के सेवन से कफ में अधिक वृद्धि होती है। अतः इस ऋतु में खासकर महिलाओं को आहार-विहार के प्रति सावधान रहना चाहिए।
- वसंत ऋतु में तजा, हल्का और सुपाच्य भोजन करना चाहिए। इस मौसम में कटु रस युक्त, तीक्ष्ण और कषाय पदार्थों का सेवन करना लाभकारी होता है।
- मूंग चना जौ की रोटी, पुराना चावल और गेहूँ, भींगा अंकुरित चना, मक्खन युक्त रोटी, हरीर साग सब्जी एवं उनका सूप लाभकारी होता है।
- सब्जियों में करेला, लहसुन , पालक , आंवला, धान की खील, खस का जल नींबू आदि का सेवन इस ऋतु में करना हितकारी है।
- शहद और आम का रस संक्रमण से बचाता है। तथा पित्त और कफ दोष मेें नियत्रण मिलता है।
- कफ को कुपित करने वाले गरिष्ट और अधिक पौष्टिक पदार्थों की मात्रा को कम करके गर्मी आने तक बंद कर देना चाहिए।
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वसंत ऋतु (मार्च- अप्रेैल) में क्या नही खाना चाहिए ?
ऋतु चर्या के नियमों के अनुसार वसंत ऋतु में कुछ खाद्य पदार्थों का सेवन वर्जित है । जैसे
- वसंत के मौसम आइसक्रीम और मैदे से बनी चीजें नही खाना चाहिए। खासकर वो महिलाएं इसके सेवन कम करें। जो गर्भवती हैं या फिर गर्भधारण की कोशिश करे रही हैं। क्योंकि दोष प्रभावित होने पर गर्भधारण में कठिनाइयां आ सकती हैं।
- नया अनाज एवं ठंडे चिकनाई युक्त भारी खट्टे एवं अधिक मीठे आहार का सेवन नही करना चाहिए।
- दही, उडद, आलू , प्याज, नया गुड़, भैंस का दूध, सिंघाड़े का आटा कम मात्रा में सेवन करें।
- दिन में सोना नही चाहिए । दिन में थोड़ा आराम जरुर कर सकत है पर सोने की आदत न बनाएं।
- दिन में अरिरिक्त स्नान वर्जित है। इससे शीत रोग हो सकते हैं।
डाइट फॉलो करने के बाद वसंत ऋतु में महिलाओं को और क्या-क्या करना चाहिए ?
आयुर्वेद के अनुसार संतुलित आहार लेने के साथ-साथ महिलओं को कुछ आयुर्वेदिक क्रियाओं का पालन करना चाहिए। जो महिलाओं के कफ दोष को कम करने में मदद करेंगे।
- आयुर्वेद के अनुसार इस समय जलनेति, नस्य एवं कुंजल क्रिया करना चाहिए।
- आंखों में आयुर्वेदिक अंजन का प्रयोग करके आंखों को संक्रमित होने से बचा सकते है।
- शरीर में चंदन एवं गुलाबजल का लेप भी लगा सकते है।
- शहद के साथ हरड का सुबह सेवन करने से कफ दोष कम हो जाता है।
- इस समय आप नहाते समय पानी में कुमकुम , चंदन , गुलाबजल मिलाकर उससे स्नान कर सकते हैं।
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