शीतपित्त या पित्ती, hives in hindi

शीतपित्त (पित्ती) के लक्षण, कारण और आयुर्वेदिक उपचार – Hives in Hindi

शीतपित्त या पित्ती एक एक प्रकार के त्वचा की समस्या है। जो मुख्य रुप से आँख, होठ. गाल, हाथ, पैरों में देखने को मिलती है। पित्ती एक बहुत ही सामान्य त्वचा रोग है। जिसके चकत्ते आकार में बड़े या फिर छोटे भी हो सकते हैं। इन चकत्तों का रंग लाल होता है और यह देखने में उभरे हुए दिखाई देते है। आपने एलर्जी जैसा शब्द तो सुना ही होगा। यह उसी से संबंधित है।

क्योंकि जिस व्यक्ति को जिस चीज से एलर्जी होती है। और ऐसे में वह व्यक्ति उस चीज के संपर्क में आता है। तो ऐसी त्वचा समस्याएं अक्सर देखने को मिलती हैं। इसमें व्यक्ति के शरीर में खुजली मचती रहती है, दर्द होता है तथा व्याकुलता बढ जाती है| कभी- कभी ठंडी हवा लगने या दूषित वातावरण में जाने के कारण भी यह शीतपित्त की समस्या हो जाती है|

त्वचा रोग विशेषज्ञ कहते है। कि यह संक्रमित रोग नही है अर्थात यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में आ जाते है। जो शीतपित्त से प्रभावित है। तो ऐसे में आप उससे प्रभावित नही होंगे। (और पढ़े – मोटापा कैसे कम करें – Motapa kam karne ke Upay)

शीतपित्त शरीर के किन-किन अंगों में होता है ?

यह शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है। यह आकार में भिन्न-भिन्न होते है। शरीर में इनकी पहचान त्वचा में उभरे हुए धब्बों के रुप में होती है। शीतपित्त किसी भी व्यक्ति को कुछ घंटो या फिर कुछ हफ्तों के लिए प्रभावित कर सकते हैं। 

कैसे होता है शीतपित्त ?

आयुर्वेद में इसे ‘शीतपित्त’ कहा गया है। आयुर्वेद के अनुसार, जब लोग ठंडी हवा के संपर्क में आते हैं तो कफ (जल) और वात (वायु) की वृद्धि होती है। यह पित्त दोष (अग्नि) के बढ़ने का भी कारण बनता है जो रक्त धातु (रक्त के ऊतकों) में फैल जाता है। पित्त की अधिकता के कारण रक्त धातु खराब हो जाती है। फिर बढ़े हुए दोष त्वचा में स्थानांतरित हो जाते हैं, जो पित्ती का कारण बनता है।

शीतपित्त के संदर्भ में कुछ आयुर्वेदिक विद्वानों का कहना है। कि जब कोई व्यक्ति अधिक तापमान, अधिक तनाव से गुजर रहा होता है। तो ऐसे अवस्था में उसके दोष प्रभावित हो जाते हैं। जिसके वजह से भी शीतपित्त के होने की संभावना बन जाती है। 

शीतपित्त Hives कितने प्रकार का होता है ?

शीतपित्त के प्रकारों की बात की जाए तो यह दो प्रकार का होता है।

तीव्र शीतपित्त – आयुर्वेद के अनुसार तीव्र पित्त का प्रभाव व्यक्ति के शरीर में कुछ, घंटो, दिनों या फिर कुछ हफ्तों तक रहता है। शीतपित्त व्यक्ति के शरीर में मुख्य रुप से चेहरा, गर्दन, जननांग , उंगलियों में होता है। परंतु ऐसी अभी तक ऐसे कोई पैमान नही है। यह शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है।

दीर्घकालिक शीतपित्त – इस शीतपित्त के नाम से ही स्पष्ट होता है। कि यह व्यक्ति को लंबे समय तक प्रभावित करेगा। इस दीर्घकालिक पित्त की समय सीमा अधिक हफ्तों तक व्यक्ति को प्रभावित कर सकती है।

शीतपित्त के कारण

आयुर्वेद के अनुसार शीतपित्त होने के कुछ और भी कारण है। जो निम्नलिखित हैं – 

  1. नमकीन और तीखे भोजन का अधिक सेवन
  2. सरसों का अधिक सेवन
  3. अधिक ठंडी हवा के संपर्क में यदि आप अधिक समय तक रहते हैं। 
  4. ठंडे पदार्थों के संपर्क  में रहने पर शीतपित्त हो सकता है। 
  5. दिन में अधिक नींद लेने पर शीतपित्त होता है। 
  6. बरसात और सर्दी के मौसम बदलाव 
  7. कीड़े का काटना
  8. जहरीले कीड़ों/कीड़ों का संपर्क

शीतपित्त के लक्षण – Symptoms of Hives in Hindi

शीतपित्त होने पर व्यक्ति के चेहरे, हाथ, धड़ और पैरों पर चकत्ते हो जाते हैं। सिर दर्द, लाल चकत्ते, खुजली, आँखों में जकड़न भी शीतपित्त का एक लक्षण है।

एंजियोएडेमा नामक एक स्थिति होती है जो पित्ती में होती है। एंजियोएडेमा के परिणामस्वरूप आंखों, गालों, होंठों, हाथों, जननांगों और पैरों जैसे क्षेत्रों में जलन या दर्द होता है, जो शीतपित्त के मामलों में होता है।

(और पढ़े – हाइड्रोसालपिनक्स बना बाँझपन की समस्या)

शीतपित्त से बचने के घरेलू उपाय – Home Remedies of Hives

आयुर्वेद का मत है। कि जहां तक हो सके, नमक का सेवन सीमित करें और दही, दही जैसे खट्टे खाद्य पदार्थों से परहेज करें और इसके बजाय करेले जैसे कड़वा स्वाद वाले भोजन का सेवन करें। हालांकि इस स्थिति में प्याज और लहसुन को अच्छा माना जाता है।

  1. चीनी, गुड़ और शराब सहित सभी मिठाइयों से बचें।
  2. असंगत खाद्य पदार्थों, खट्टे खाद्य पदार्थों और भारी खाद्य पदार्थों से बचें जिन्हें पचाना मुश्किल होता है।
  3. ताजा तैयार, आसानी से पचने योग्य खाद्य पदार्थ लें।
  4. पके हुए चने, करेले की सब्जी और अनार खाएं।
  5. चीनी की जगह शहद का प्रयोग करें।
  6. एक दिन का उपवास करें या बहुत हल्का भोजन करें जैसे उबले हुए चावल, सब्जी का सूप आदि।
  7. उल्टी की इच्छा को दबाने से बचें।
  8. तनाव इस स्वास्थ्य स्थिति को खराब करने के लिए जिम्मेदार है। आपको ऐसी तकनीकों का अभ्यास करना चाहिए जो आपके मन और आत्मा को आराम दें, जैसे कि ध्यान, योग और गहरी साँस लेना। ये तनाव से राहत दिलाने में कारगर हैं।

यदि उपरोक्त लक्षण सांस लेने में कठिनाई, उल्टी, दिल की धड़कन में भिन्नता या रक्तचाप के साथ हैं, तो जल्द से जल्द डॉक्टर से मिलना चाहिए। 

शीतपित्त का आयुर्वेदिक उपचार – Ayurvedic Treatment of Hives

आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ जैसे हरिद्रा, नीम , शिरीष , अश्वगंधा ,वासा ऐसी जड़ी-बूटियाँ हैं जो त्वचा रोगों और विष (विषाक्तता) पर बेहतर काम करती हैं। इसलिए इनका उपयोग पित्ती के इलाज के लिए किया जा सकता है। चिकित्सक नागकेसर को शहद में मिलाकर चाटें, परंतु चिकित्सक की सलाह जरुर लें। 

आयुर्वेदिक दवाओं और पंचकर्म प्रक्रियाओं के साथ दोष की समाप्ति और शरीर के विषाक्त पदार्थों का शुद्धिकरण पित्ती को ठीक करने के लिए आवश्यक है।

अभ्यंग (मालिश), स्वेदन (सेंक), वामन (उल्टी से प्रेरित) और विरेचन (प्रेरित लूज मोशन) पित्ती के इलाज में बहुत प्रभावी हैं।

शीतपित्त का घरेलू उपचार

आज ही अधिकांश घरों में शीतपित्त जैसे त्वचा विकार को घरेलू उपचारों के द्वारा घर की दादी-नानी या फिर बड़े बुजुर्गों के द्वारा ठीक किया जाता है। उन्हीं के कुछ नुस्खें नीचे दिए गये हैं- 

  1. नीम के पत्तों का पेस्ट/गुडुची के पत्ते या एलोवेरा के गूदे को 5 से 7 ग्राम की मात्रा में रोजाना सेवन करने से पित्ती कम हो जाती है।
  2. 1 चम्मच हल्दी पाउडर को एक गिलास दूध या पानी के साथ दिन में दो से तीन बार लें। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का बेहतरीन इलाज है।
  3. 15 मिनट तक सरसों के तेल से त्वचा की मालिश करें, इसके बाद गुनगुने पानी से नहा लें।
  4. काली मिर्च पाउडर ½ से एक चम्मच और देसी घी ½ चम्मच मिलाकर रोज सुबह खाली पेट सेवन करें। बेहतर परिणाम के लिए तीन महीने तक जारी रखें।
  5. गेरु मिट्टी पाउडर को प्रभावित चकत्तों में लगाने से शीतपित्त में आराम मिलता है। 

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