हैप्पी होली 2025

इस होली कैसे करे अपनी त्वचा की देखभाल?: हैप्पी होली 2025

भारतीय संस्कृति में होली का त्यौहार प्राचीन काल से बहुत ही धूम धाम से मनाया जाता रहा है। इस दिन लोग एक दूसरे से सारे गीले शिकवे भूलकर गले मिलते हैं और रंग-गुलाल लगाते हैं। इस त्यौहार का धार्मिक महत्त्व जितना ज्यादा है उतना ही आयुर्वेदिक महत्त्व भी है। होली का त्यौहार हर साल फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस ब्लॉग में आगे बढ़ने से पहले आप सभी को हैप्पी होली, इस समय थोड़ी थोड़ी ठण्ड होती है और मौसम परिवर्तन का चक्र चल रहा होता है। ऐसे में लोगों को तरह तरह की बीमारियां भी होती हैं। इन सबसे बचाव करते हुए अपनी सेहत का ध्यान रखना बहुत जरुरी है। 

हिंदी तिथि के अनुसार होली का त्यौहार प्रत्येक साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। इस वर्ष होली का त्यौहार 14 मार्च 2025 को मनाया जाएगा। इससे ठीक एक दिन पहले यानी 13 मार्च को होलिका दहन मनाया जाएगा। (ये भी पढ़े : आयुर्वेदिक तरीके से होली कैसे मनाएं?)

हिन्दू धर्म में होली का त्यौहार बहुत ही महत्वपूर्ण है, इसका धार्मिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक रूप से बहुत महत्त्व है। यूँ तो हिन्दू धर्म में हर माह की पूर्णिमा को कुछ खास उत्सव होता है लेकिन फाल्गुन पूर्णिमा के अवसर पर मनाया जाने वाला होली का त्यौहार बहुत खास है। हमारे समाज में होली से जुड़ी कई कथाएं मौजूद हैं जिनमे से सबसे लोकप्रिय है भक्त प्रहलाद की कथा। होली से एक दिन पहले होलिका दहन मनाने की परम्परा चलती आ रही है। इस कथा के अनुसार राजा हिरण्यकश्यप की एक संतान थी जिसका नाम प्रह्लाद था। राक्षस कुल में पैदा होने के बावजूद वह भगवान् विष्णु का भक्त था और उनकी ही आराधना में लगा रहता था जिसके कारण उसके पिता हिरण्यकश्यप क्रोधित हुए और कई तरीकों से उसे मारने का प्रयास करने लगे।

राजा की एक बहन थी जिसका नाम होलिका था। उसे वरदान स्वरुप एक चादर मिली थी जिसे ओढ़कर वह अग्नि से सुरक्षित निकल सकती थी। हिरण्यकश्यप के आदेश पर होलिका भक्त प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। लेकिन कहते हैं चादर उड़कर भक्त प्रह्लाद पर आ गई जिससे उसका बाल भी बांका नहीं हुआ और होलिका अग्नि में जलकर भस्म हो गई। तभी से होलिका दहन की परम्परा चलती आ रही है। 

एक अन्य कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी बरसाने में होली खेला करते थे और उन्होंने ही फाल्गुन पूर्णिमा को होली मानने की परम्परा की शुरुआत की। आधुनिक समय में भी ब्रज की होली पुरे विश्व में प्रसिद्द है जिसे लठमार होली भी कहा जाता है। 

एक और पौराणिक कथा के अनुसार (जो शिवपुराण में वर्णित है) जब देवी पार्वती शिव से विवाह की इच्छा लिए घोर तपस्या में लीन थी तब ताड़कासुर के वध करने के स्वार्थवश भगवान् इंद्र ने कामदेव की सहायता से भगवान् शिव की तपस्या भंग कर दी। जिसके परिणामस्वरूप शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया और फिर देवताओं की विनती पर माता पार्वती से शादी कर ली। और कामदेव की पत्नी रति को पति के पुर्नजन्म का वरदान प्राप्त हुआ। यह दोनों कार्य फाल्गुन पूर्णिमा के दिन संपन्न हुए थे इसलिए इस दिन को उत्सव स्वरुप होली का त्यौहार (हैप्पी होली) मनाया जाने लगा। 

आयुर्वेदिक डॉक्टर चंचल शर्मा ने आयुर्वेदिक तेलों की लिस्ट दी है जिससे आप होली के दौरान अपनी त्वचा की रक्षा कर सकते हैं। होली के दौरान सभी लोग एक दूसरे को रंग लगाते हैं जिससे आपकी स्किन ख़राब हो सकती है। इससे बचाव के लिए आप इन तेलों का इस्तेमाल कर सकते हैं: 

जब भी त्वचा की सुरक्षा की बात आती है तो आपके जहाँ में पहला नाम नारियल तेल का जरूर आता होगा। आप सबने अपने अपने घरों में दादी, नानी को देखा होगा कि बालों से लेकर स्किन तक हर समस्या के लिए वह नारियल तेल का इस्तेमाल करती हैं। नारियल के तेल में बड़े बड़े मॉलीक्यूल्स होते हैं जो आपकी त्वचा पर एक सुरक्षा घेरा बनाते हैं और जब रंग लगता है तो वह लेयर कवच का काम करता है और उसे स्किन के अंदर जाने से रोकता है। यह तेल ज्यादा मोटा भी नहीं होता है। 

ऑलिव आयल एक ऐसा तेल है जो बहुत ही पतला होता है और त्वचा को चिपचिपा नहीं बनाता है। आप इसका इस्तेमाल होली के दौरान लगने वाले जिद्दी रंग और धुप से बचने के लिए भी कर सकते हैं। इससे होली का रंग जल्दी छूट जाता है और आपकी स्किन भी अच्छी रहती है। 

बादाम का तेल त्वचा के लिए काफी अच्छा माना जाता है, लेकिन इसकी खुशबु बहुत तेज होती है इसलिए आप अगर इसका इस्तेमाल करना चाहती हैं तो इसे लैवेंडर तेल के साथ मिला लें। अगर आप होली खेलने से पूर्व इसे अपनी स्किन पर लगा लेते हैं तो होली खेलने के बाद रंग छुड़ाने में ज्यादा परेशानी नहीं होगी। बादाम का तेल रंग को त्वचा से चिपकने नहीं देता है। 

आप अपनी त्वचा की रक्षा करने के लिए तेल लगाने के बाद मॉइस्चराइज़र का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। इससे होली के बाद होने वाले स्किन इन्फेक्शन या इर्रिटेशन से बचाव होता है। इसे आप शरीर के सभी अंगों पर लगा सकते हैं। 

होली का आयुर्वेदिक महत्त्व क्या है?

होली का त्यौहार बसंत ऋतू में मनाया जाता है जिस दौरान आपके शरीर में कफ दोष का स्तर बढ़ जाता है। कफ दोष के कारण आपके शरीर में ऊर्जा की कमी हो जाती है इसलिए रंग और उमंग से मनाए जाने वाला यह त्यौहार आपके शरीर में कफ दोष को संतुलित करने का कार्य करता है। 

 ➤ हिन्दू धर्म के अनुसार होली क्यों मनाई जाती है?

बुराई पर अच्छाई की जीत की ख़ुशी में हर वर्ष फाल्गुन माह के पूर्णिमा को होली का त्यौहार मानाया जाता है। 

होली में रंग क्यों खेला जाता है?

होली का त्यौहार प्रेम और सौहार्द का प्रतिक है इसलिए इसे आनन्दोत्सव के रूप में रंग लगाकर मनाया जाता है। इसकी शुरुआत श्री कृष्ण और राधा ने किया था। 

इस लेख की जानकारी हमें डॉक्टर चंचल शर्मा द्वारा दी गई है। अगर आपको लेख पसंद आया तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं। ऐसे ही और इंफॉर्मेटिव ब्लॉग पोस्ट के साथ आपसे फिर मिलेगे। इस विषय से जुड़ी या अन्य Tubal Blockage, PCOS/PCOD, हाइड्रोसालपिनक्स उपचार पर ज्यादा जानकारी चाहते हैं। हमारे डॉक्टर चंचल की ऑफिशियल वेबसाइट पर जाए या हमसे +91 9811773770 संपर्क करें।

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