आयुर्वेदा के जनक भगवान धन्वंतरि का अवतरण कैसे हुआ? आइये जानते हैं इसकी पूरी कहानी
दिवाली से एक दिन पहले धनतेरस मनाने की परंपरा वर्षों से हमारे देश में चलती आ रही है। इसकी कोई तारीख निश्चित नहीं होती है बल्कि हिंदी तिथि के अनुसार यह दिन तय किया जाता है। हिंदी महीने के अनुसार कार्तिक के माह में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस मनाया जाता है। इस अवसर पर धन की देवी माँ लक्ष्मी और आयुर्वेदा के जनक भगवान् धन्वंतरि की पूजा आराधना की जाती है। इस दिन पूजा के साथ ही लोग सोने चाँदी की खरीददारी भी करते हैं। भगवान् धन्वंतरि को देवताओं के वैद्य के रूप में भी जाना जाता है। उनकी पूजा करने से सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य और स्वास्थ्य लाभ होता है। भगवान् धन्वंतरि की पूजा करने से ना केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य भी अच्छा होता है। आइये इस ब्लॉग पोस्ट के माध्यम से जानते हैं आयुर्वेदा के जनक भगवान् धन्वतरि का अवतरण कैसे हुआ और देवताओं के चिकित्सक धन्वंतरि कौन हैं?
भगवान धन्वंतरि का धनतेरस के साथ क्या सम्बन्ध है?
धन्वंतरि को भगवान् विष्णु के अवतार के रूप में भी जाना जाता है। धनतेरस वाले दिन ही भगवान् विष्णु ने धन्वंतरि रूप में अवतार लिया था। धन्वंतरि का अवतरण समुद्र मंथन से अमृत कलश के साथ होने के कारण इनका बर्तनों से गहरा सम्बन्ध माना जाता है। इसलिए धनतेरस वाले दिन कलश या कोई भी बर्तन खरीदने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है जिसे बहुत शुभ माना जाता है।
भगवान् धन्वंतरि कौन हैं?
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हिन्दू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान् धन्वंतरि को जगदीश्वर प्रभु विष्णु का एक अंश माना जाता है। यानि धन्वंतरि को हम भगवान् विष्णु का अंशावतार भी कह सकते हैं। उन्हें आयुर्वेदा के जनक के रूप में भी जाना जाता है। एक मान्यता यह भी है कि धन्वंतरि का जन्म द्वापर युग में काशीराज धन्व के घर में पुत्र रूप से हुआ था। कहा जाता है कि जब उन्होंने घोर तपस्या की थी तो भगवान् ने प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद स्वरुप यह भेंट दी थी। उनके पिता धन्व काशी शहर के संस्थापक माने जाते हैं। एक प्रचलित कहानी यह भी है कि भगवान् विष्णु द्वारा समुद्र मंथन में प्राप्त वरदान के परिणामस्वरूप धन्वंतरि ने मनुष्य के रूप में द्वापर युग में जन्म लिया जिसके बाद उन्हें देवत्व की प्राप्ति हुयी। भगवान् धन्वंतरि को देवताओं का वैद्य भी कहा जाता है।
भगवान् धन्वंतरि स्वरूप
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अगर आपने भगवान् धन्वंतरि की कोई प्रतिमा देखी होगी तो आपने ध्यान दिया होगा कि उनका स्वरुप भगवान् विष्णु के जैसा ही प्रतीत होता है। उनकी चार भुजाएं होती हैं जिनमे ऊपर की दो भुजाओं में कलश और शंख होता है। वहीँ उन्होंने अपने नीचे के दो हाथों में आयुर्वेद संहिता और औषधि धारण कर रखा है। उनके हाथों में समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कलश भी होता है।
भगवान् धन्वंतरि का अवतरण कब हुआ?
एक पौराणिक कथा के अनुसार किसी समय देवताओं की धनराशि समाप्त हो गया था और वो धीरे धीरे धन और ऐश्वर्य से विहीन होने लगे। इसी मौके का फायदा उठाते हुए असुरों ने देवलोक पर आक्रमण कर दिया और धनधान्य से विहीन होने के कारण देवता उनका सामना अच्छे से नहीं कर पाए और युद्ध में परास्त हो गए। इस हार के बाद अपनी समस्या के समाधान हेतु सभी देवता पहले ब्रम्हा जी के पास गए। लेकिन उनके श्रीविहीन होने की बात सुनकर ब्रम्हा जी ने उन्हें भगवान् विष्णु के पास जाने की सलाह दी। ब्रम्हा जी के अनुसार इस समस्या का समाधान तो लक्ष्मीपति भगवान् विष्णु ही कर सकते थे।
भगवान् विष्णु ने गंभीर होकर उनकी समस्या सुनी और फिर देवताओं से कहा की आप सभी मिलकर समुद्र मंथन करे। समुद्र मंथन से आपको एक अमृत कलश प्राप्त होगा जिसमे मौजूद अमृत का पान करने से आप सभी अमर हो जायेंगे और फिर युद्ध में कहीं भी पराजित नहीं होंगे।
आप अपमृत्यु के वश में नहीं पड़ेंगे। लेकिन भगवान् विष्णु ने यह भी कहा कि इस प्रक्रिया को संपन्न करने हेतु आपको असुरों की भी जरुरत होगी। फिर असुरों की मदद से समुद्र मंथन किया गया जिसमे सबसे पहले विष निकला। विष को महादेव ने धारण किया जिसके कारण उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है। समुद्र मंथन के अंतिम रत्न के रूप में देवताओं को अमृत कलश की प्राप्ति हुयी जिसे सभी देवताओं ने पिया और अमर हो गए। अंतिम रत्न अमृत कलश को लेकर जिन देवता का अवतरण हुआ वही भगवान् धन्वंतरि थे।
भगवान् धन्वंतरि ने पृथ्वी पर जन्म क्यों लिया?
हिन्दू धार्मिक ग्रंथों और शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन के परिणामस्वरूप देवताओं को 14 रत्नों की प्राप्ति हुयी थी। जिसमे आखिरी रत्न के रूप में भगवान् धन्वंतरि अमृत कलश लेकर अवतरित हुए। उस समय सभी देवताओं ने पहले अमृत का पान किया फिर देवताओं के देवता देवराज इंद्र ने भगवान धन्वंतरि को देवताओं के चिकित्सक के रूप में नियुक्त किया। उसके बाद से वो अमरावती में रहने लगे। कहा जाता है कि द्वापर युग में जब पृथ्वीलोक पर रोगों का प्रभाव बढ़ने लगा और लोग बीमार होने लगे तब देवराज इंद्र के अनुरोध करने पर भगवान धन्वंतरि ने काशीराज धन्व के घर में पुत्र रूप में जन्म लिया और पृथ्वी को रोगों से मुक्त किया।
भगवान् धन्वंतरि को आयुर्वेदा के जनक के रूप में क्यों जाना जाता है?
एक पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में पृथ्वी पर अवतरित होने के बाद भगवान् धन्वंतरि ने भारद्वाज मुनि से आयुर्वेदा का ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने आयुर्वेदा के ज्ञान को अष्टांग में विभाजित करके अपने शिष्यों के बीच रखा। धन्वंतरि ने सभी प्राकृतिक औषधियों की खोज की और फिर उन्हें आयुर्वेदा के जनक के रूप में जाना जाने लगा। धन्वंतरि को वही स्थान प्राप्त था जो वैदिक काल में अश्विनी को मिला था। उन दोनों में केवल इतना फर्क था की अश्विनी के हाथ में मधुकलश था तो धन्वंतरि के हाथ में अमृत कलश।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेदा के जनक के रूप से जाना जाता है।
हिन्दू मान्यता और शास्त्रों के अनुसार धन्वंतरि को भगवान् विष्णु का अवतार कहा जाता है। इन्होने आयुर्वेदा का प्रवर्तन किया और द्वापर युग में पृथ्वी पर फ़ैल रहे रोगों का नाश करके मनुष्य जाति का उद्धार किया।
धन्वंतरि का अवतरण समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश लेकर हुआ था, जिसके कारण उन्हें देवताओं के चिकित्सक के रूप में नियुक्त किया गया। इसके बाद द्वापर युग में भारद्वाज मुनि से आयुर्वेदिक ज्ञान प्राप्त करके उसे अष्टांग में विभाजित कर अपने शिष्यों में बांटने के कारण उन्हें आयुर्वेदा के देवता के रूप में जाना गया।