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आयुर्वेदिक उपचार से गर्भावस्था को बनाए बेहतर – Ayurvedic Treatment for Pregnancy in Hindi

आयुर्वेदिक उपचार से गर्भावस्था को बनाए और भी बेहतर

माँ बनने की खुशी किसी वरदान से कम नही होती है। माँ बनना एक वरदान के जैसा ही होता है क्यों कि माँ बनने का सपना एक बड़ी तपस्या के बाद पूरा होता है। गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के सामने कई प्रकार की शारीरिक तथा मानसिक चुनौतियाँ होती है, जिनका उन्हें सामना करना पड़ता है। गर्भवस्था के दौरान यदि गर्भवती महिलाएं आयुर्वेदिक नुस्खों को अपना लें तो गर्भावस्था बहुत ही आसान हो जाती है।

“गर्भावस्था या प्रेग्नेंसी वह शब्द है जिसका उपयोग उस अवधि का वर्णन करने के लिए किया जाता है जिसमें एक महिला के गर्भ या गर्भाशय के अंदर एक भ्रूण विकसित होता है। गर्भावस्था आमतौर पर लगभग 40 सप्ताह, या सिर्फ 9 महीनों तक रहती है”।

गर्भावस्था एक महिलाओं के जीवन का एक सबसे महत्वपूर्ण समय होता है। इस दौरान उन्हें अपने खाने पीने से लेकर हर उस चीज पर बारीकी से ध्यान देना पड़ता है जिससे की उनका स्वास्थ्य प्रभावित होता है। आयुर्वेद प्राचीन काल से ही महिलाओं की देखभाल करता आ रहा है और आज भी पूरी प्रतिबध्यता के साथ कर रहा है।

यदि आप अपने बच्चे को इस संसार में आने के लिए गर्भधारण कर चुकी है तो यह समय आपके लिए बहुत ही रोमांचक समय है। हालांकि इस गर्भधारण काल में आपको कुछ परेशानी होगी और मन में बहुत सारे प्रश्न भी होंगे। गर्भावस्था के दौरान के खुद और अपने शिशु को स्वस्थ रखने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना बहुत ही जरूरी होता है। 

प्रेग्नेंसी में क्या नही खाना चाहिए (pregnancy me kya nahi khana chahiye) – 

आशा आयुर्वेदा – YouTube

गर्भावस्था के दौरान कुछ खाद्य पदार्थों का सेवन अधिक मात्रा में नही करना चाहिए। यदि आप ऐसा करती है तो आपके होने वाले बच्चे का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। गर्भवस्था एक महत्वपूर्ण अवस्था होती है इस दौरान आपको बहुत ही सोच समझ कर खाद्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। 

  1. नमक का सेवन एक उचित मात्रा में करना चाहिए। इसके ज्यादा सेवन से आपके आपका स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। 
  2. डिब्बा बंद भोजन और प्रोसेस्ड फूड खाने से बचना चाहिए। 
  3. धूम्रपान तथा नशीले पदार्थों का सेवन बिल्कुल भी न करें क्योंकि इसके सेवन से आपके गर्भ में पल रहे शिशु का स्वास्थ्य खराब हो सकता है। 
  4. चाय और कॉफी दोनो ही स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते है इसलिए अगर हो सके तो इनके सेवन कर कर दें। 
  5. चीनी युक्त तथा अधिक फैट युक्त पदार्थों के सेवन से बचें। 

गर्भावस्था मेें संतुलित भोजन कितना फ़ायदेमंद है (Pregnancy me Santulit Bhojan in Hindi) –

आयुर्वेद में हमेशा से कहा जाता रहा है कि हर किसी के लिए संतुलित भोजन बहुत ही जरूरी होता है। संतुलित भोजन से गर्भावस्था में होने वाली कब्ज और उल्टी की समस्या से निजात मिल जाती है। संतुलित भोजन से माँ और शिशु दोनो का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। संतुलित भोजन से महिला के शरीर में आवश्यक पोषक तत्वों की कमी पूरी हो जाती है जिससे भ्रूण का विकास तेजी के साथ होता है। 

संतुलित भोजन में दूध तथा दूध से बने पदार्थ माँ तथा उसके गर्भ में पल रहे शिशु दोनों की सेहत के लिए अच्छा होता है। दूध से कैल्शिलयम की कमी पूरी हो जाती है। फलियां एवं सूखे मेवों में आयरन, प्रोटीन, फाइबर तथा फोलिक एसिड होता है। शकरकंद का भी सेवन कर सकती है। 

गर्भावस्था में आयुर्वेद कैसे मदद करता है (pregnancy me ayurved kaise madad karta hai) – 

गर्भवती महिलाएं अपने गर्भ में पल रहे बच्चे की अच्छी सेहत के लिए आयुर्वेद दवा (स्वर्ण प्राशन) का सेवन करने से गर्भ में पल रहा शिशु पूर्ण रुप से स्वस्थ होगा और उसका संपूर्ण स्वास्थ्य अच्छा होगा। आयुर्वेद के अनुसार गर्भवती महिला को उचित आहार-विहार का ध्यान देना चाहिए तथा संतुलित भोजन में अधिक जोर देने की कोशिश करना चाहिए।

स्वर्ण प्राशन – स्वर्ण प्राशन एक आयुर्वेदिक ड्रिप है इसके पीने से आपका होने वाला शिशु प्रतिभान तथा ओजस्वी होता है। ज्योतिष शास्त्र के मत के अनुसार यदि स्वर्ण प्राशन को आप पुष्यनक्षत्र में पिलाते है तो इसके गुण की गुना बढ़ जाते है। स्वर्ण प्राशन एक प्रकार का संस्कार है जो गर्भवती महिलाओं को शिशु के शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से पिलाया जाता है। स्वर्ण प्राशन शिशुओं के स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभकारी होती है। स्वर्ण प्राशन का अधिकांश प्रयोग महाराष्ट्र औ दक्षिण भारत में ज्यादा देखने को मिलता है। स्वर्ण प्राशन औषधि गर्भाधान के समय महिलाओं को दवा के रुप में दी जाती है। इसके अतिरिक्त 10 वर्ष के तक के बालको को भी इस औषधि का सेवन कराया जाता है। स्वर्ण प्राशन का उल्लेख कश्यप संहिता और सुश्रुत संहिता में देखने को मिलता है।

अभ्यंग (मालिस) – आयुर्वेद के अनुसार यदि गर्भवती महिलाएं औषधि तेलो के द्वारा शरीर की मालिस करवाती है तो उनके शरीर के दोष संतुलित हो जाते है तथा रोम छिद्र के द्वारा उनके शरीर के विषाक्त पदार्थ बाहर निकल जाते है। अभ्यंग के द्वारा गर्भवती महिला के शरीर के शुद्धिकरण हो जाता है जिससे गर्भवस्था में आसानी हो जाती है।

स्नेहपन्नम – यह एक ऐसी आयुर्वेदिक क्रिया है जिसके अंतर्गत महिला को औषधि घी पिलाकर पेट की बीमारियों को दूर किया जाता है।

शिरोधरा – जो महिलाएं प्रेगनेंसी में उन्हें तनाव बिल्कुल भी नही लेना चाहिए। यदि किसी कारण वश उनके जीवन में तनाव आ गया है तो इसे दूर करने के लिए शिरोधरा पद्धति का सहारा ले सकती है।  (और अधिक पढ़े – महिला निःसंतानता का आयुर्वेदिक उपचार

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