राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस 2022 | धनवंतरी जयंती के दिन राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाने की खास वजह
आयुर्वेद को दुनिया की सबसे पुरानी चिकित्सा प्रणालियों में से एक माना जाता है। आयुर्वेद का मुख्य उद्देश्य रोग की रोकथाम और स्वास्थ्य को बढ़ावा देना है। चिकित्सा की सबसे प्रचीन पद्धति आयुर्वेद की आज वैश्विक स्तर पर स्वीकार्यता बढ़ रही है। हर साल राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस को धन्वंतरि जंयती (Dhanvantari Jayanti) या धनतेरस के दिन मनाया जाता है। इस साल देश अपना छठा राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस 2022 में मनेगा।
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस की शुरूवात साल 2016 से हुई है। जैसा की आपको नाम से समझ आ ही गया होगा की इस दिवस का मनाने का उदेश्य क्या है। आज इस लेख के माध्यम से हम आपको धनतेरस के दिन राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस (National Ayurveda Diwas) मनाने की खास वजह बताने वाले है।
(और पढ़े – Eco Friendly Diwali कैसे मनाई जाती है? || ईको फ्रेंडली दिवाली 2022)
धनतेरस (धनवंतरी) के दिन क्यों मनाते है राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस | National Ayurveda Diwas in Hindi
जब एक मनुषय को दवाओं की समझ नहीं थी तब कई रोगों का उपचार आयुर्वेद पद्धति के माध्यम से किया जाता था। और इसका दुष्प्रभाव भी नहीं होता है इसलिए इसकी महत्त्व भी बहुत है। परंतु सभी लोगों के मन में सवाल आता है कि आखिर राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस (National Ayurveda Diwas in Hindi) धनतेरस के दिन ही क्यों मनाया जाता है? दरअसल, भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद और आरोग्य का देवता माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान धन्वंतरि की उत्पति समुद्र मंथन (Samudra Manthan) के दौरान हुई थी। इसलिए दिवाली से दो दिन पहले भगवान धन्वंतरी के जन्मदिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाता हैं। ऐसे में धनतेरस के दिन राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस मनाया जाता है।
धन्वंतरि कौन थे जिनकी होती है धन तेरस पर पूजा
भारतीय पौराणिक दृष्टि से धनतेरस को स्वास्थ्य के देवता का दिवस मनाया जाता है। भगवान धन्वंतरि से जुड़ी दो कहानियां मौजूद है:
- समुद्र मंथन से उत्पन्न धन्वंतरि: ऐसा कहा जाता है कि आयुर्वेद की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा से हुई है। आदिकाल के ग्रंथों में रामायण-महाभारत तथा विविध पुराणों की रचना हुई है, जिसमे सभी ग्रंथों को आयुर्वेदावतरण के प्रसंग में भगवान धन्वंतरि का उल्लेख किया है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, धन्वंतरि का जन्मदिन कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को आमतौर पर अक्टूबर या नवंबर के महीने में मनाया जाता है। मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद के देवता के रूप में जाना जाता है और उन्हें भगवान विष्णु के अवतारों में से एक माना जाता है। और भगवान धन्वंतरि की उत्पति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। इस दिन भगवान धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे। भगवान धन्वंतरि को अक्सर चार हाथों वाले विष्णु के रूप में चित्रित किया जाता है, जिसमें शंख, चक्र, जलौका और अमृत युक्त एक बर्तन होता है। इसलिए दिवाली से दो दिन पहले भगवान धन्वंतरी के जन्मदिन को धनतेरस के रूप में मनाया जाता हैं।
- धन्व के पुत्र धन्वंतरि: कहा जाता हैं कि काशी के राजवंश में धन्व नाम के एक राजा ने उपासना करके अज्ज देव को प्रसन्न किया और उन्हें वरदान के रूप में धन्वंतरि नामक पुत्र मिला। इस कथा का उल्लेख ब्रह्मा और विष्णु पुराण में भी मिलता है। यह समुद्र मंथन से उत्पन्न भागवान धन्वंतरि का दूसरा जन्म था। ऐसा कहा जाता है कि धन्वंतरि एक महान चिकित्सक थे जो देव पद से प्राप्त हुआ। इनके वंश में दिवोदास ने शल्य चिकित्सा का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया। जिसके प्रधानाचार्य, दिवोदास के शिष्य और ॠषि विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत संहिता के प्रणेता, सुश्रुत विश्व के पहले सर्जन (शल्य चिकित्सक) थे।
(और पढ़े – जायफल के फायदे और नुकसान)
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस 2022 स्वास्थ्य समृद्धि का पर्व
आज के समय में आयुर्वेद दिवस की चिकित्सा प्रणाली का राष्ट्रीयकरण करने के उद्देश्य से इसे वैश्विक बनाना है।
कई आयुर्वेदाचार्य के मुताबिक वास्तव में धनतेरस शारीरिक और सामाजिक समृद्धि का पर्व है। आज के समय में काम की भागदौड़ में ऐसा काल च्रक चला है कि हम शारीरिक स्वास्थ्य और सामाजिक स्वास्थ्य की प्रधानता के साथ धनतेरस को केवल सम्पदा विनियम का पर्व मनाने लगे है। जहां सबने धनतेरस को धन की मूल्यांकन की महत्तव से जोड़ा है। वस्तव में धनतेरस सभी के लिए स्वास्थ्य एवं सुख-समृद्धि का पर्व है। साथ ही काशी और देश भर में दीपावली के अवसर पर कार्तिक त्रयोदशी-धनतेरस को भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं।
राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस का उदेश्य
आयुर्वेद दिवस का मुख्य उदेश्य आयुर्वेद को आगे को बढ़ाने का प्रयास करने की मुहिम है। इस बार आयुर्वेद की ताकत और इसके अनुठे उपचार सिद्धांतों पर ध्यान देना है। साथ ही इस लेख के माध्यम से आज की पीढ़ी में आयुर्वेद के प्रति जागरूकता की भावना पैदा करना और समाज में चिकित्सा के आयुर्वेदिक सिद्धांतों को बढ़ावा देना है।