Asthma in Hindi – अस्थमा (दमा) के कारण, लक्षण व आयुर्वेदिक उपचार
आयुर्वेद में अस्थमा होने का कारण दोष असंतुलित (दोष कुपित) को बताया गया है। क्योंकि जब कफ, पित्त और वात दोष का संतुलन बिगड़ जाता है। ऐसे में व्यक्ति को सुखी खांसी आने लगती है , गले से सीटी के जैसे आवाज निकलने लगती है।
मरीज की त्वचा में रुखापन आने लगता है , चिड़चिड़ाहट की समस्या होने लगती है। अस्थमा (Asthma) की समस्या के चलते मरीज कब्ज और चिंता का शिकार भी हो जाता है। जोकि स्वास्थ्य के लिए खतरा हो सकता है।
अस्थमा के उपचार के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सा एक बेहतरीन विकल्प है। जो Asthma के लक्षणों से छुटकारा दिलाने में मददगार है। भारत में करीब 30 मिलियन से अधिक लोग अस्थमा की बीमारी से प्रभावित हैं। ऐसे में लोगों को दमा की बीमारी के प्रति जागरुक होकर अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए।
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दमा किसी प्रकार की बीमारी है और यह मरीज के किस अंग को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है
अस्थमा या दमा व्यक्ति के फेफड़ो से संबंधित बीमारी है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को श्वास लेने में तकलीफ होती है। क्योंकि दमा के कारण वायुमार्ग प्रभावित हो जाता है। जो दमा के मरीजों की श्वसन नलियों में सूजन पैदा करके उनके मार्ग को संकुचित कर देता है।
इससे शरीर के अंदर और बाहर हवा ठीक से नही जा पाती है। और मरीज को श्वास लेने में परेशानी होती है। यह व्यक्ति के फेफड़ो को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। दमा के मरीज यदि थोड़ा सा भी शारीरिक परिश्रम कर लेते है। तो उनकी सांस तेजी से फुंलने लगती है।
आयुर्वेद में अस्थमा की बीमारी को तमक श्वास के रुप में परिभाषित किया गया है। जब व्यक्ति के दो दोष वात और कफ में किसी प्रकारी की विकृत्ति उत्पन्न हो जाती है। तो श्वास नलियों के मार्ग बहुत कम हो जाते है। ऐसे में व्यक्ति को शरीर में भारीपन महसूस होता है। और सांस लेना मुश्किल होने लगता है।
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अस्थमा (दमा) कितने प्रकार का होता है ?
मरीजों के अलग-अलग लक्षणों के आधार पर अस्थमा का वर्गीकरण किया गया जो इस प्रकार है –
- अकुपेशनल अस्थमा – इस प्रकार के दमा से ऐसे लोग ज्यादातर प्रभावित होत है। जो कारखानों में कार्यरत हैं।
- सिजनल अस्थमा – यह ऐसा अस्थमा है जो पूरे साल न होकर किसी विशेष मौसम में लोगों को प्रभावित करता है।
- नॉन एलर्जिक दमा – जब किसी व्यक्ति को अधिक चिंता (अवसाद) या फिर सर्दी जुकाम लग जाते है। तो ऐसी स्थिति को नॉन एलर्जिक दमा कहते हैं।
- एलर्जिक अस्थमा – किसी विशेष चीज, विशेष गंध से यदि किसी व्यक्ति की एलर्जी होती है। और वो व्यक्ति उसके संपर्क में आ जाता है। तो ऐसे अस्थमा को एलर्जिक अस्थमा की की श्रेणी में रखा जाता है।
दमा के लक्षण – Symptoms of Asthma in Hindi
दमा के लक्षणों के बात करें। तो इसमें सबसे पहला लक्षण है । कि सांस लेने में परेशानी जाती है। इसके अलावा भी और कई लक्षण है जो अस्थमा जैसी बीमारी के संकेत देते हैं
- व्यक्ति को बार-बार खांसी आती है।
- सांस लेने में मुंह से सीटी जैसी आवाज निकलती है।
- सांस फूलती है।
- खांसी के समय गले में दर्द होता है और आसानी से कफ बाहर नही आ पाता है।
- बेचैनी होती है और पल्स रेट बढ़ जाता है।
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अस्थमा के मरीजों को कौन-कौन सी बातों का विशेष ध्यान देना चाहिए। जिससे अस्थमा को नियंत्रित किया जा सके ।
- यदि आप अस्थमा के मरीज हैं। तो आपको सर्दी और धूल में नही जाना चाहिए। बारिस के मौसम में घर के बाहर नही जाना चाहिए। क्योंकि बारिस के मौसम में सबसे ज्यादा संक्रमण होने की संभावना होती है।
- अधिक ठंडी और नमी वाली जगहों पर जाने से बचना चाहिए।
- अस्थमा मरीजों को मास्क का प्रयोग करना चाहिए।
- धूम्रपान बिल्कुल भी नही करना चाहिए। और धूम्रपान करने वले व्यक्तियों से दूूरी बनानी चाहिए।
- अपनी जीवनशैली को आयुर्वेद के अनुसार बताई गई दिनचर्या को लागू कर दमा के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
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अस्थमा के आयुर्वेदिक उपचार – Ayurvedic Treatment of Asthma
अस्थमा को आयुर्वेदिक उपचार के द्वारा ठीक किया जाता है। आयुर्वेदिक औषधि और जड़ी बुटियां बहुत ज्यादा प्रभावी है। जो रोगी को ठीक कर उसके स्वास्थ्य में सुधार करता है। आयुर्वेद की इन जड़ी बुटियों में फेफड़ों को मजबूत करने के गुण पाये जाते है।
- आयुर्वेद में दमा रोगियों को ठीक करने के लिए शहद, लौंग , अदरक, अजवाइन तथा हर्बल पेय की सिफारिश की जाती है। यह सभी आयुर्वेदिक औषधि मरीज के छाती के दर्द , सूजन और फेफड़ो की स्वाशन नली की रुकावट को दूर करने में मदद करते हैं।
- बड़ी इलायची एक आयुर्वेदिक औषधि है। जिसमें कफ को समाप्त करने के गुण पाये जाते है। यह मरीज के शरीर का कफ समाप्त करके अस्थमा के लक्षणों को कम करता है।
- आयुर्वेदिक चिकित्सक कण्टकारी अवलेह सेवन की सलाह देते है। जो अस्थमा से राहत दिलाता है।
- कनकासव
- मुलेठी
- पुष्करमूल इत्यादि।
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