प्रत्येक राष्ट्र का भविष्य उसके वहां की बाल पीढ़ी पर ही निर्भर होता है। असल में देखा जायें तो किसी राष्ट्र के वन, खनिज, संपदा इत्यादि सभी देश की यथार्थ संपत्ति नही होती है। परंतु ऋषि परंपरा वाले इस महान देश भारत में दिव्य संस्कारों से संपन्न तेजस्वी संतानों को देश की सच्ची संपत्ति माना गया है।
भारत मेें उत्पन्न हुई संतानेे जैसे – श्रीराम, श्रीकृष्ण, विवेकानंद, बौद्ध, रविन्द्रनाथ, महात्मा गांधी इत्यादि । इन सभी महान पुरुषों में दिव्य गुणों के दर्शन होते है। इन महान व्यक्तित्व वाले पुरुषों में कहीं न कहीं ऐसे संस्कारों का प्रदुर्भाव था। जो इन सभी को एक आम इंसान से खास बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
अपने इस ब्लॉग में इन सभी महान पुरुषों का वर्णन करने का यह उद्देश्य था । कि यह कोई स्त्री गर्भाधान (गर्भसंस्कार) के समय अपने मन में जैसे पुत्र की कामना करती है। उसे उसी के अनुरुप संतान की प्राप्ति होती है। यहां पर हम बात कर रहें है बीज संस्कार की ।
बालक की प्रथम शिक्षिका उसकी माँ ही होती है। इस बात के लिए इतिहास गवाह है कि श्रेष्ठ माताएं अपनी संतान को श्रेष्ट एवं आदर्श बनाती है। इनकी पीछे छिपा है , बीच संस्कार । “जितना अच्छा बीज होगा, पौधा उतना ही शानदार होगा” ठीक उसी प्रकार सोलह संस्कारों में से एक है बीज संस्कार जो गर्भाधान के पूर्ण किया जाता है।
गर्भस्थ शिशु में कैसे पड़ता है संस्कारों का प्रभाव –
प्रेगनेंसी के टाइम शिशु एवं गर्भवती माता का बहुत ही गहरा संबंध होता है। इस दौरान गर्भ में पल रहा शिशु अपने भोजन की आपूर्ति एवं अन्य जरुर पौष्टिक चीजें गर्भनाल के माध्यम से अपनी माँ से प्राप्त करता है। इसलिए माता के शाशीरिक , मानसिक, नैतिक स्थिति का पूर्ण प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है।
आइये यहां पर कुछ ऐसे उदाहरण है, जिनके आधार पर बीज संस्कार के महत्व को आसानी से समझा जा सकता है।
हम पहला उदाहरण लेते है – महाभारत के अभिमन्यू से – अभिमन्यू महारभारत का एक ऐसा योद्धा (warrior ) था। जिसने अपनी माँ (सुभद्रा) के गर्भ में ही चक्रव्यूह में प्रवेश करने की शिक्षा अपने पिता (अजुर्न) से प्राप्त कर ली थी । गर्भ में पल रहें अभिमन्यू ने चक्रव्यूह विद्या गर्भ ऐसे ग्रहण किया जैसे वह खुद इस विद्या में पूरी तरह से पारंगत हो। गर्भ में प्राप्त की गई इस शिक्षा का प्रयोग उन्होंने रणभूमि में चक्रव्यूह को भेदने के लिए किया और उसमें वह सफल हुए। इस बात की पुष्ठि खुद अभिमन्यू ने महाभारत में युद्ध के दौरान की है।
दूसरा उदाहरण है – राक्षसराज हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रहलाद – गर्भावस्था के दौरान प्रहलाद की माता को कयादू को देवर्षि नारद ने ज्ञान की भक्ति का उपदेश दिया था। जिसे गर्भ में स्थिति प्रहलाद नें भी सुना था। प्रहलाद पर इस ईश्वर भक्ति का प्रभाव इस कदर पड़ा । कि पिता के ईश्वर द्रोही होेने पर प्रहलाद ने भगवत् भक्ति को नही छोड़ा। और आगे चल कर महान प्रहलाद ईश्वर का सबसे बड़ा भक्त निकला। गर्भ में प्रहलाद के संस्कार संत्संग और धार्मिक प्रवृत्ति के रहे। इसलिए पूरे जीवन प्रहलाद भक्ति में ही लीन रहा।
नेपोलियन बोनापार्ट – यह बहुत एक महान योद्धा थे । जिन्होने युद्ध की कला अपनी माँ के पेट में ही सीख ली थी। नेपोलियन बोनापार्ट की माँ गर्भावस्था में घुडसवारी और युद्ध करती थी।
सन् 1804 की बात है । जब केबोट नाम के एक गांव में 6 वर्ष का एक ऐसा विलक्षण बालक था। जो पांच अंको का गणन मुहं जुबानी कर लेता था। जब इस बालक की विलक्षण प्रतिभा की खोज की गई तो पता चला कि – इस बालक की माँ किसी निजी कंपनी में कार्यरत थी। जो कपड़े की अलग-अलग डिजाइनों के ताने-बाने बहुत ही सुक्ष्मता से गिनने पड़ते थे। अब एक दिन ऐसी घटना घटी कि इसका पूर्ण प्रभाव गर्भस्थ शिशु के ऊपर पड़ा।
एक दिन की बात है जब रोज की तरह कपडे की डिजाइन बनाने के लिए अलग-अलग ताने-बाने गिन रही थी । परंतु इन तानों-बानों से अच्छी आकृति का निर्माण नही हो पा रहा था । ऐसा करते हुए उसे पूरा दिन हो गया था। और पूरे दिन की मेहनत बर्बाद हो गई । तो थक-हार कर उसकी सारी कोशिश निष्फल हो चुकी थी। ऐसे में उस महिला के मस्तिष्क का बहुत प्रयास करना पड़ा था। पूरी रात जागने के बाद भी उस महिला को कोई सफलता नही मिली थी।
अंत में महिला ने काम छोड़ने का निर्णय ले लिया और वह काम को छोडकर जाने ही वाली की अचानक उनके मस्तिष्क में एक सवाल उठा। की अगर ऐसा कर लिया तो एक अच्छी आकृति बन सकती है। महिला के उन विचारों का गर्भस्थ शिशु पर इस कदर प्रभाव पड़ा कि बालक में इस विलक्षण प्रतिभा का विकास हुआ।
आशा आयुर्वेदा की डॉ चंचल शर्मा कहती है कि“ माँ-बाप के आचार-विचार का प्रभाव गर्भस्थ शिशु पर पूरी तरह से पड़ता है, इसलिए गर्भवती अधिक से अधिक अच्छी-अच्छी किताबें पढ़े, भगवत गीता का पाठ करें, भगवान श्रीकृष्ण की लीलोओं के दर्शन करें, लड्डू गोपाल की पूजा करें” ।
बीज संस्कार एवं गर्भाधान संस्कार को वर्तमान में आधुनिक विज्ञान पूर्ण रुप से स्वीकार कर रहा है —
हमारे सनातनी महर्षि ऋषि-मुनियों के हजारो वर्ष पहले जिस बात को सिद्ध कर दिया था। कि बालक गर्भ में ही सीखना शुरु कर देता है । उसे अब आधुनिक विज्ञान ने भी मान लिया है। भारतीय आचार्यों ने अनादिकाल में बता दिया था कि शिशु को जो संस्कार गर्भावस्था में प्राप्त होते है वह आगे चल कर वैसा ही बन जाता है। इसके उदाहरण इतिहास में भरे पड़े है।
आयुर्वेदिक विज्ञान के वैज्ञानिक ने शोध करके निकाल है कि बच्चा गर्भ में ही सिखाने की शुरुआत कर देता है।
बच्चे को गर्भ में ही क्यों बनाना चाहिए – सुसंस्कारी –
वर्तमान समय में माता-पिता अक्सर ऐसा सोचते है कि हमारी संताने ऐसी क्यों हुई है। तो उन्हें यह बात अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि वह गर्भाधान एवं बीज संस्कार के दौरान उचित-अनुचित तिथि का ध्यान नहीं रखते है।
यदि माता-पिता शास्त्रों की आज्ञा के अनुसार रहें तो उनके यहां पर संस्कारी और दिव्य संतान पैदा होगी। आज भी यदि बीज संस्कार का पालन पूरे नियम के साथ किया जाये तो आपके घरों में राम और कृष्ण के जैसी संतान पैदा होगी।
जो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान टीवी सीरियल या अश्लील फिल्म देखती है, अश्लील गाने सुनती है , उनके गर्भ में पल रहे शिशु में वैसे ही संस्कार प्रवाहित होगें। जिससे वह बड़े होकर कामुक, उपराधी होगें।
गर्भावस्था के दौरान आपको चाहिए कि आप प्रतिदिन सत्संग करें, देव-दर्शन करें, भगवत-उपासना करें, अपने मन में सद्-विचारों को भरें।
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